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गोम्मटसार। प्रमाण घनाङ्गुलके संख्यातमें भागमात्र है । उससे संख्यातगुणी त्रीन्द्रियोंकी जघन्य अवगाहना है, यह कुंथुके पाई जाती है । इससे संख्यातगुणी चौइन्द्रियोंमें काणमक्षिकाकी,
और इससे भी संख्यातगुणी पंचेन्द्रियोंमें सिक्थमत्स्यकें जघन्य अवगाहना पाई जाती है। यहांपर आचार्योंने द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय आदि शब्द न लिखकर "बि, ति, च, प," ये शब्द जो लिखे हैं वे 'नामका एकदेश भी सम्पूर्ण नामका बोधक होता है। इसनियमके आश्रयसे लाघवके लिये लिखे हैं।
जघन्यसे लेकर उत्कृष्ट अवगाहनापर्यन्त जितने भेद हैं उनमें किस भेदका कौन स्वामी है ! और अवगाहनाकी न्यूनाधिकताका गुणाकार क्या है ? यह पांच गाथाओंद्वारा बताते हैं।
सुहमणिवातेआभूवातेआपुणिपदिद्विदं इदरं । बितिचपमादिलाणं एयाराणं तिसेढीय ॥ ९७ ॥
सूक्ष्मनिवातेआभूवातेअनिप्रतिष्ठितमितरत् ।
द्वित्रिचपमाद्यानामेकादशानां त्रिश्रेणयः ॥ ९७ ॥ अर्थ-एक कोठेमें सूक्ष्मनिगोदिया वायुकाय तेजकाय जलकाय पृथिवीकाय इनका क्रमसे स्थापन करना। इसके आगे दूसरे कोठेमें वायुकाय तेजकाय जलकाय पृथिवीकाय निगोदिया प्रतिष्ठित इनका क्रमसे स्थापन करना । और तीसरे कोठेमें अप्रतिष्ठित द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रियोंका क्रमसे स्थापन करना । इसके आगे उक्त सोलह स्थानों मेंसे आदिके ग्यारह स्थानोंकी तीन श्रेणि मांडना चाहिये । भावार्थ-तीनकोठोंमें स्थापित सोलह स्थानों के आदिके ग्यारहस्थान जो कि प्रथम द्वितीय कोठेमें स्थापित किये गये हैं-अर्थात् सूक्ष्मनिगोदियासे लेकर प्रतिष्ठित पर्यन्तके ग्यारह स्थानोंको क्रमानुसार उक्त तीन कोठा ओंके आगे पूर्ववत् दो कोठाओंमें स्थापित करना चाहिये, और इसके नीचे इनही ग्यारह स्थानोंके दूसरे और दो कोठे स्थापित करने चाहिये, तथा दूसरे दोनों कोठों के नीचे तीसरे दो कोठे स्थापित करना चाहिये इसप्रकार तीन श्रेणिमें दो २ कोठाओंमें ग्यारह स्थानोंको स्थापित करना चाहिये । और इसके आगेः
अपदिहिदपत्तेयं बितिचपतिचबिअपदिहिदंसयलं । तिचबिअपदिद्विदं च य सयलं बादालगुणिदकमा ॥ ९८॥
अप्रतिष्ठितप्रत्येक द्वित्रिचपत्रिचढ्यप्रतिष्ठितं सकलम् ।
त्रिचव्यप्रतिष्ठितं च च सकलं द्वाचत्वारिंशद्गुणितक्रमाः ॥ ९८ ॥ अर्थ-छट्टे कोठेमें अप्रतिष्ठित प्रत्येक द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चौइन्द्रिय पंचेन्द्रियका स्थापन करना। इसके आगेके कोठेमें क्रमसे त्रीन्द्रिय चौइन्द्रिय द्वीन्द्रिय अप्रतिष्ठित प्रत्येक पंचेन्द्रियका स्थापन करना। इससे आगे के कोठेमें त्रीन्द्रिय चौइन्द्रिय द्वीन्द्रिय अप्रतिष्ठित प्रत्येक
गो. ६
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