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गोम्मटसारः।
उसके बारहमे वर्गमूलका जगच्छ्रेणीमें भागदेनेसे जो लब्ध आवे उतने ही दूसरी पृथिवीके नारकी हैं। इस ही प्रकार दशमे वर्गमूलका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतने तीसरी पृथिवीके, और आठमे वर्गमूलका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतने चौथी पृथिवीके, तथा छड़े वर्गमूलका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतने पांचमी पृथिवीके, और तीसरे वर्गमूलका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतने छट्ठी पृथिवीके, तथा दूसरे वर्गमूलका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतने सातमी पृथिवीके नारकी होते हैं । यह उत्कृष्ट संख्याका प्रमाण है-अर्थात् एक समयमें जादेसे जादे इतने नारकी हो सकते हैं ।
इसतरह नीचेकी छह पृथिवियोंके नारकियोंका प्रमाण बताकर अब प्रथम पृथिवीके नारकियोंका प्रमाण बताते हैं ।
हेट्ठिमछप्पुढवीणं रासिविहीणो दु सवरासी दु । पढमावणिनि रासी रइयाणं तु णिहिट्ठो ॥ १५३ ॥ .
अधस्तनषट्पृथ्वीनां राशिविहीनस्तु सर्वराशिस्तु ।
प्रथमावनौ राशिः नैरयिकाणां तु निर्दिष्टः ॥ १५३ ॥ अर्थ-नीचेकी छह पृथिवियोंके नारकियोंका जितना प्रमाण हो उसको सम्पूर्ण नारकराशिमेंसे घटानेपर जो शेष रहे उतना ही प्रथम पृथ्वीके नारकियोंका प्रमाण है। तिर्यग्जीवोंकी संख्या वताते हैं ।
संसारी पंचक्खा तप्पुण्णा तिगदिहीणया कमसो । सामण्णा पंचिंदी पंचिंदियपुण्णतेरिक्खा ॥ १५४ ॥ संसारिणः पञ्चाक्षास्तत्पूर्णाः त्रिगतिहीनकाः क्रमशः।
सामान्याः पञ्चेन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियपूर्णतैरश्वाः ॥ १५४ ॥ अर्थ-सम्पूर्ण जीवराशिमेंसे सिद्धराशिको घटानेपर जितना प्रमाण रहे उतना ही संसारराशिका प्रमाण है। संसारराशिमेंसे नारक मनुष्य देव इन तीन राशियोंको घटानेपर जो शेष रहे उतना ही सामान्य तियचोंका प्रमाण है । सम्पूर्ण पंचेंन्द्रियोंमेंसे उक्त तीन गतिके पंचेन्द्रियोंको घटानेपर जो शेष रहें उतने पंचेन्द्रिय तिर्यंच हैं । तथा पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों के प्रमाणमेंसे उक्त तीन गतिके पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका प्रमाण घटानेपर जो शेष रहें उतने ही पर्याप्त तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव हैं। .
छस्सयजोयणकदिहिदजगपदरं जोणिणीण परिमाणं ।
पुण्णूणा पंचक्खा तिरियअपजत्तपरिसंखा ॥ १५५ ॥ १-२ पंचेन्द्रिय और पर्याप्तकोंका प्रमाण आगे बतायेंगे।
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