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गोम्मटसार ।
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दूसरेकी अपेक्षा न रखनेसे अर्थात् स्वतन्त्र होनेसे अपने २ को इन्द्र मानते हैं । उस ही प्रकार स्पर्शनादिक इन्द्रियां भी अपने २ स्पर्शादिक विषयोंमें दूसरेकी ( रसना आदिकी ) अपेक्षा न रखकर स्वतंत्र हैं । अतएव इनको इन्द्रके ( अहमिन्द्रके ) समान होनेसे इन्द्र कहते हैं ।
इन्द्र संक्षेपसे भेद और उनका स्वरूप बताते हैं ।
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मदिआवरणखओवसमुत्थविसुद्धी हु तज्जबोहो वा । भाविंदियं तु दवं देहुदयजदेह चिन्हं तु ॥ १६४ ॥
मत्यावरणक्षयोपशमोत्थविशुद्धिर्हि तज्जबोधो वा । भावेन्द्रियं तु द्रव्यं देहोदयजदेहचिह्नं तु ॥ १६४ ॥
अर्थ – इन्द्रियके दो भेद हैं एक भावेन्द्रिय दूसरा द्रव्येन्द्रिय । मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेवाली विशुद्धि, अथवा उस विशुद्धिसे उत्पन्न होनेवाले उपयोगात्मक ज्ञानको भावेन्द्रिय कहते हैं । और शरीरनामकर्मके उदयसे होनेवाले शरीर के चिह्नविशेषको द्रव्येन्द्रिय कहते हैं ।
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इन्द्रियकी अपेक्षासे जीवोंके भेद कहते हैं ।
फासरसगंधरूवे सद्दे गाणं च चिण्हयं जेसिं । इगिवितिचदुपंचिंदियजीवा णियभेयभिण्णाओ ॥ १६५ ॥
स्पर्शरसगंधरूपे शब्दे ज्ञानं च चिह्नकं येषाम् ।
एक द्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियजीवा निजभेदभिन्नाः ॥ १६५ ॥
अर्थ-जिन जीवों के बाह्य चिह्न ( द्रव्येन्द्रिय ) और उसके द्वारा होनेवाला स्पर्श रस गंध रूप शब्द इन विषयोंका ज्ञान हो उनको क्रमसे एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय जीव कहते हैं । और इनके भी अनेक अवान्तर भेद हैं । भावार्थ-जिन जीवोंके स्पर्शविषयक ज्ञान और उसका अवलम्बनरूप द्रव्येन्द्रिय मौजूद हो उनको एकेन्द्रिय जीव कहते हैं । इस ही प्रकार अपने २ अवलम्बनरूप द्रव्येन्द्रियके साथ २ जिन जीवोके रसविषयक ज्ञान हो उनको द्वीन्द्रिय, और गंधविषयक ज्ञानवालोंको त्रीन्द्रिय, तथा रूपषयक ज्ञानवालोंको चतुरिन्द्रिय, और शब्दविषयक ज्ञानवालोंको पंचेन्द्रिय जीव कहते हैं । इन इकेन्द्रियादि जीवोंके भी अनेक अवान्तर भेद हैं । तथा आगे २ की इन्द्रियवालोंके पूर्व २ की इन्द्रिय अवश्य होती है । जैसे रसनेन्द्रियवालोंके स्पर्शनेन्द्रिय अवश्य होगी और प्राणेन्द्रियवालोंके स्पर्शन और रसना अवश्य होगी । इत्यादि पंचेन्द्रिय पर्यन्त ऐसा ही समझना ।
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