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गोम्मटसारः। ( जो जेरके साथ उत्पन्न हों ), अण्डज ( जो अण्डेसे उत्पन्न हों ) इन तीन प्रकारके जीवोंका गर्भ जन्म ही होता है । देव नारकियोंका उपपाद जन्म ही होता हैं। शेष जीवोंका सम्मूर्छने जन्म ही होता है। किस जन्मके साथ कौनसी योनि सम्भव है यह तीन गाथाओंद्वारा बताते हैं ।
उबबादे अचित्तं गम्भे मिस्सं तु होदि सम्मुच्छे । सञ्चित्तं अञ्चित्तं मिस्सं च य होदि जोणी हु॥८५॥
उपपादे अचित्ता गर्भे मिश्रा तु भवति सम्मूर्छ । __सचित्ता अचित्ता मिश्रा च च भवति योनिर्हि ॥ ८५ ॥ अर्थ-उपपाद जन्मकी अचित्त ही योनि होती है। गर्भजन्मकी मिश्र योनि ही होती है । तथा सम्मूर्छन जन्मकी सचित्त अचित्त मिश्र तीनों तरहकी योनी होती है।
उबबादे सीदुसणं सेसे सीदुसणमिस्सयं होदि । उबबादेयक्खेसु य संउड वियलेसु विउलं तु ॥८६॥ उपपादे शीतोष्णे शेषे शीतोष्णमिश्रका भवन्ति ।
उपपादैकाक्षेषु च संवृता विकलेषु विवृता तु ॥ ८६ ॥ अर्थ-उपपाद जन्ममें शीत और उष्ण दो प्रकारकी योनि होती हैं । शेष जन्मोंमें शीत उष्ण मिश्र तीनों ही योनि होती हैं। उपपाद जन्मवालोंकी तथा एकेन्द्रिय जीवोंकी योनि संवृत ही होती है । और विकलेन्द्रियोंकी विवृत ही होती है।
गब्भजजीवाणं पुण मिस्सं णियमेण होदि जोणी हु। संम्मुच्छणपंचक्खे वियलं वा विउलजोणी हु॥ ८७ ॥ गर्भजजीवानां पुनः मिश्रा नियमेन भवति योनिर्हि ।
सम्मूर्छनपंचाक्षयोः विकलं वा विवृतयोनिार्ह ॥ ८७ ॥ अर्थ-गर्भजजीवोंकी योनि नियमसे मिश्र ( संवृत विवृतकी अपेक्षा ) होती है। पंचेन्द्रिय सम्मूर्छन जीवोंकी विकलेन्द्रियोंकी तरह विवृत योनि ही होती है । उक्त गुणयोनिकी उपसंहारपूर्वक विशेषसंख्याको वताते हैं।
सामण्णण य एवं णव जोणीओ हवंति वित्थारे । लक्खाण चदुरसीदी जोणीओ होति णियमण ॥ ८८ ॥ सामान्येन चैवं नव योनयो भवन्ति विस्तारे ।
लक्षाणां चतुरशीतिः योनयो भवन्ति नियमेन ॥ ८८ ॥ १ देवोंके उत्पन्न होने की शय्या और नारकियोंके उत्पन्न होनेके उष्ट्रकादि स्थानोंको उपपाद कहते हैं, उनमें उत्पन्न होनेको भी उपपाद कहते हैं । २ चारो तरफसे पुद्गलका इकट्ठा होना (जू मच्छर आदिके जन्मविशेष में रूढ है)।३माताके सचित्तरज और पिताके अचित्त वीर्य के मिलनेसे मिश्र योनि होती है।
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