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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । शंखावर्तकयोनिः कूर्मोन्नतवंशपत्रयोनी च ।
तत्र च शंखावर्ते नियमात्तु विवय॑ते गर्भः ॥ ८१॥ अर्थ-योनिके तीन भेद हैं, शंखावर्त कूमोन्नत वंशपत्र । उनमेंसे शंखावर्त योनिमें गर्भ नियमसे वर्जित है । भावार्थ-जिसके भीतर शंखके समान चक्कर पड़े हों उसको शंखा. वर्त योनि कहते हैं । जो कछुआकी पीठकी तरह उठी हुई हो उसको कूर्मोन्नत योनि कहते हैं । जो वांसके पत्तेके समान लम्बी हो उसको वंशपत्र योनि कहते हैं । ये तीन तरह की आकार योनि हैं। इनमेंसे प्रथम शंखावर्तमें नियमसे गर्भ नहीं रहता।
कुम्मुण्णयजोणीये तित्थयरा दुविहचक्कवट्टी य । रामा वि य जायते सेसाए सेसगजणो दु ॥ ८२ ॥ कूर्मोन्नतयोनौ तीर्थकरा द्विविधचक्रवर्तिनश्च ।
रामा अपि च जायन्ते शेषायां शेषकजनस्तु ॥ ८२ ॥ अर्थ-कूर्मोन्नतयोनिमें तीर्थकर अर्धचक्री चक्रवर्ती तथा बलभद्र और अपिशब्दकी सामर्थ्यसे साधारण पुरुष भी उत्पन्न होते हैं । तीसरी वंशपत्रयोनिमें साधारण पुरुष ही उत्पन्न होते हैं तीर्थंकरादि महापुरुष नहीं होते। जन्म तथा उसकी आधारभूत गुणयोनिके भेदोंको गिनाते हैं ।
जम्मं खलु सम्मुच्छणगभुबबादा दु होदि तजोणी । सचित्तसीदसंउडसेदरमिस्सा य पत्तेयं ॥ ८३॥
जन्म खलु सम्मूर्छनगर्भोपपादास्तु भवति तद्योनयः । . सचित्तशीतसंवृतसेतरमिश्राश्च प्रत्येकम् ।। ८३ ॥ अर्थ-जन्म तीन प्रकारका होता है, सम्मूर्छन गर्भ उपपाद । तथा इनकी आधारभूत सचित्त शीत संवृत, अचित्त उष्ण विकृत, मिश्र, ये गुण योनि होती हैं । इनमेंसे यथासम्भव प्रत्येक सम्मुर्छनादि जन्मके साथ लगालेनी चाहिये । किन जीवोंके कोनसा जन्म होता है यह बताते हैं।
पोतजरायुजअंडजजीवाणं गब्भ देवणिरयाणं । उबबादं सेसाणं सम्मुच्छणयं तु णिपिढें ॥ ८४ ॥ पोतजरायुजांडजजीवानां गर्भः देवनारकाणां ।
उपपादः शेषाणां सम्मूर्छनकं तु निर्दिष्टम् ॥ ८४ ॥ अर्थ-पोत (जो उत्पन्न होते ही भागने लगें, जैसे शेर विल्ली हिरन आदि), जरायुज १ आत्मप्रदेशोंसे युक्त पुद्गलपिण्डको सचित्त कहते हैं। २ ढका हुआ। ३ खुला हुआ। ४ दोका मिला हुआ, जैसे सचित्त और अचित्तको मिलकर एक मिश्र योनि होती है।
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