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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
श दोनों ही प्रकारके होते हैं, वैसा अपूर्वकरणमें नहीं है; किन्तु यहांपर भिन्न समयवर्ती जीवोंके परिणाम विसदृश ही होते हैं सदृश नहीं होते ।
इस गुणस्थानका दो गाथाओं द्वारा विशेषस्वरूप दिखाते हैं ।
भिण्णसमट्ठियेहिंदु जीवेहिं ण होदि सत्रदा सरिसो । करणेहिं एकसमयडियेहिं सरिसो विसरिसो वा ॥ ५२ ॥ भिन्नसमयस्थितैस्तु जीवैर्न भवति सर्वदा सादृश्यम् । करणैरेकसमयस्थितैः सादृश्यं वैसादृश्यं वा ॥ ५२ ॥
अर्थ - यहांपर ( अपूर्वकरणमें ) भिन्नसमयवर्ती जीवों में विशुद्ध परिणामों की अपेक्ष कभी भी सादृश्य नहीं पाया जाता; किन्तु एक समयवर्ती जीवोंमें सादृश्य और वैसादृश्य दोनही पाये जाते हैं ।
अंतमुत्तमेते पडिसमयमसंखलोगपरिणामा ।
कमउड्ढा पुचगुणे अणुकट्ठी णत्थि नियमेण ॥ ५३ ॥
अन्तर्मुहूर्तमात्रे प्रतिसमयमसंख्य लोक परिणामाः ।
क्रमवृद्धा अपूर्वगुणे अनुकृष्टिर्नास्ति नियमेन ॥ ५३ ॥
अर्थ -- इस गुणस्थानका काल अन्तर्मुहूर्तमात्र है, और इसमें परिणाम असंख्यात लोकप्रमाण होते हैं, और वे परिणाम उत्तरोत्तर प्रतिसमय समानवृद्धिको लिये हुए हैं । तथा गुणस्थानमें नियमसे अनुकृष्टिरचना नहीं होती है । भावार्थ - अधःप्रवृत्तकरणके कालसे अपूर्वकरणका काल यद्यपि संख्यातगुणा हीन है; तथापि सामान्य से अन्तर्मुहूर्तमात्रही है । और इसमें परिणामोंकी संख्या अधःप्रवृत्तकरणके परिणामोंकी संख्यासे असंख्यात लोकगुणी है । और इन परिणामों में उत्तरोत्तर प्रतिसमय समान वृद्धि होती गई है । अर्थात् प्रथम समय के परिणामोंसे जितने अधिक द्वितीय समय के परिणाम हैं उतने २ ही अधिक द्वितीयादि समयके परिणामोंसे तृतीयादि समय के परिणाम हैं । तथा जिसप्रकार अधःप्रवृत्तकरणमें भिन्नसमयवर्ती जीवोंके परिणामोंमें सादृश्य पाया जाता है इसलिये वहां पर अनुकृष्टि रचना की है उस प्रकार अपूर्वकरण में अनुकृष्टि रचना नहीं होती; क्योंकि भिन्नमयवर्ती जीवों के परिणामों में यहांपर सादृश्य नहीं पाया जाता । इसकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है । सर्वधनका प्रमाण ४०९६ है, चयका प्रमाण १६, और स्थानका प्रमाण ८ है । एक घाटिपदके आधेको चय और पदसे गुणाकरनेपर चयधनका प्रमाण ७ X १६२८ = ४४८ होता है । सर्वधनमें से चयधनको घटाकर पदका भाग देने से प्रथमसमयसम्बन्धी परिणामपुंजका प्रमाण -४४८ = ४५६ होता है । इसमें एक २ चय जोड़ने पर द्वितीयादिक
४०९६-४४८
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