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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । त्रसचतुर्युगलानां मध्ये अविरुद्धैर्युतजातिकर्मोदये ।
जीवसमासा भवन्ति हि तद्भवसादृश्यसामान्याः ॥ ७१ ॥ __ अर्थ-सस्थावर बादरसूक्ष्म पर्याप्तअपर्याप्त प्रत्येकसाधारण इन चार युगलोंमेंसे अविरुद्ध त्रसादि कर्मोंसे युक्त जाति नामकर्मका उदय होनेपर जीवोंमें होनेवाले ऊर्ध्वतासामान्यरूप या तिर्यक् सामान्यरूप धौंको जीवसमास कहते हैं । भावार्थ-एक पदार्थकी कालक्रमसे होनेवाली अनेक पर्यायोंमें रहनेवाले समानधर्मको ऊर्ध्वतासामान्य अथवा सादृश्यसामान्य कहते हैं । एक समयमें अनेक पदार्थगत सदृश धर्मको तिर्यक् सामान्य कहते हैं । यह उर्ध्वतासामान्यरूप या तिर्यक सामान्यरूप धर्म, त्रसादि युगलोंमेंसे अविरुद्ध कर्मोंसे युक्त एकेन्द्रियादि जाति नामकर्मका उदय होनेपर उत्पन्न होता है । इसीको जीवसमास कहते हैं। जीवसमासके चौदह भेदोंको गिनाते हैं।
बादरसुहमेइंदियवितिचउरिंदियअसण्णिसण्णी य । पजत्तापजत्ता एवं ते चोदसा होंति ॥ ७२ ॥ बादरसूक्ष्मैकेन्द्रियद्वित्रिचतुरिन्द्रियासंज्ञिसंज्ञिनश्च ।
पर्याप्तापर्याप्ता एवं ते चतुर्दश भवन्ति ॥ ७२ ॥ अर्थ-एकेन्द्रियके दो भेद हैं, बादर तथा सूक्ष्म । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञिपंचेन्द्रिय, संज्ञिपंचेन्द्रिय । ये सातो ही प्रकारके जीव पर्याप्त और अपर्याप्त दोनों ही प्रकारके होते हैं । इसलिये जीवसमासके सामान्यसे चौदह भेद हुए। विस्तारपूर्वक जीवसमासोंका वर्णन करते हैं।
भूआउतेउवाऊणिच्चचदुग्गदिणिगोदथूलिदरा । पत्तेयपदिठ्ठिदरा तसपण पुण्णा अपुण्णदुगा ॥ ७३ ॥ भ्वपूतेजोवायुनित्यचतुर्गतिनिगोदस्थूलेतराः ।
प्रत्येकप्रतिष्ठेतराः त्रसपञ्च पूर्णा अपूर्णद्विकाः ॥ ७३ ॥ अर्थ-पृथिवी, जल, तेज, वायु, नित्यनियोद, इतरनिगोद, इन छहके बादर सूक्ष्मके भेदसे बारह भेद हुए । तथा प्रत्येकके दो भेद, एक सप्रतिष्ठित दूसरा अप्रतिष्ठित । और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी, संज्ञी इसतरह त्रसके पांच भेद । सब मिलाकर उन्नीस भेद होते हैं । ये सभी पर्याप्त, निवृत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त होते हैं । इसलिये उन्नीसका तीनके साथ गुणा करनेपर जीवसमासके उत्तरभेद ५७ होते हैं। __ जीवसमासके उक्त ५७ भेदोंके भी अवान्तर भेद दिखानेके लिये स्थानादि चार अधिकारोंको कहते हैं।
१ त्रसकर्मका बादरकेसाथ अविरोध और सूक्ष्म के साथ विरोध है, इसीप्रकार पर्याप्तकर्मका साधारणकर्मकेसाथ विरोध और प्रत्येकके साथ अविरोध है । इसीतरह अन्यत्र भी यथासम्भव लगालेना ।
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