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२४ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ
सरस्वतीके वरद पुत्र
• डॉ० हुकमचंद भारिल्ल, जयपुर
धवलादि महाग्रन्थोंके यशस्वी संपादक, करणानुयोगके प्रकाण्ड पण्डित, सिद्धान्ताचार्य पदवीसे विभूषित उन गिने-चुने विद्वानोंमेंसे हैं, जिन्होंने टूट जाने की कीमतपर भी कभी झुकना नहीं जाना । संघर्षों के बीच बीता उनका जीवन एक खुली पुस्तकके समान है, जिसके प्रत्येक पृष्टपर उनके संघर्षशील अडिग व्यक्तित्वकी अमिट छाप है।
रणभेरी बजने पर स्वाभिमानी राजपूतका शान्त बैठे रहना जिसप्रकार संभव नहीं रहता, उसीप्रकार अवसर आनेपर किसी भी चुनौतीको अस्वीकार करना -- छात्रतेजके धनी पंडित फूलचंदजीको कभी संभव नहीं रहा । कठिन से कठिन चुनौतीको सहज स्वीकार कर लेना, उनकी स्वभावगत विशेषता रही है । चुनौतियोंसे जूझनेकी अद्भुत क्षमता भी उनमें है ।
खानिया तत्त्वचर्चा" उनकी इसी स्वभावगत विशेषताका सुपरिणाम है, जो अपने आपमें एक अद्भुत ऐतिहासिक वस्तु बन गई है । पूज्य गुरुदेव श्रीकानजी स्वामीकी आध्यात्मिक क्रान्तिके धवल इतिहासमें पंडितजीकी " खानिया तत्त्वचर्चा" एवं "जैन तत्त्व-मीमांसा" एक कीर्ति स्तंभके रूपमें सदा ही स्मरणकी जाती रहेंगी । मोटी खादीकी धोती, कुर्ता और टोपीमें लिपटा साधारण-सा दिखनेवाला उनका असाधारण व्यक्तित्व प्रथम दर्शनमें भले ही साधारण लगे, पर निकट सम्पर्क होनेके साथ-साथ उनके व्यक्तित्वकी दृढ़ता और दृढ़ संकल्पका परिचय सहज ही होने लगता है ।
सिद्धान्त शास्त्रोंके गहन अध्येताका अभिनन्दन वास्तवमें एक प्रकारसे सिद्धान्त शास्त्रोंका ही अभिनन्दन है । यद्यपि सरस्वती के आराधकों, उपासकों, लाड़ले सपूतोंको इन लौकिक अभिनन्दनोंकी आकांक्षा नहीं होती, होनी भी नहीं चाहिए; तथापि सरस्वती माताकी प्रतिदिन वंदना करनेवाली जिनवाणी भक्त धर्मप्रेमी समाजको भी अपनी भावनाओंको व्यक्त करनेके अधिकारसे वंचित नहीं किया जा सकता है ।
पंडितजी उस वरिष्ठतम पीढ़ीके प्रतिनिधियोंमेंसे एक हैं जो प्रायः निश्शेष हो चुकी है या निश्शेष होती जा रही है । सिद्धान्तज्ञानके रूपमें आज उनके पास जो भी अनुपम निधि उपलब्ध है; हमारा कर्तव्य है कि हम उसका अधिकतम लाभ लें । कोई ऐसा बृहत् उपक्रम किया जाना चाहिए, जिससे उनके ज्ञानको आगामी पीढ़ीके लिए सुरक्षित किया जा सके ।
पंडित फूलचंद्रजी सिद्धान्ताचार्यका सिद्धान्तज्ञानमय जीवन अध्यात्ममय हो, आनन्दमय हो जावे -इस मंगल कामनाके साथ उन्हें प्रणाम करता हूँ ।
आगमज्ञ लौहपुरुष : पण्डितजी
• श्री नेमिचन्द पाटनी, आगरा
सितम्बर सन् १९६३ में ब्र० श्री लाड़मलजी तथा ब्र० सेठ हीरालालजी पाटनी द्वारा खानिया ( जयपुर ) में आचार्य महाराज श्री शिवसागरजीकी उपस्थितिमें एक तत्वचर्चाका आह्वान किया गया था, जिसका उद्देश्य पू० कानजी स्वामी द्वारा प्रतिपादित अपेक्षाओंको आगमके विपरीत ठहराना था । अतः उन्होंने दोनों पक्षके विद्वानोंको आमन्त्रित किया। उसका एक आमन्त्रण-पत्र मुझे भी प्राप्त हुआ था । निमन्त्रण प्राप्त होनेपर मैंने सोनग से सम्पर्क किया, तो वहाँसे श्रीयुत् रामजी भाई द्वारा निर्णय मिला कि तत्त्वका निर्णय तो स्वकल्याणार्थ किया जाता है; क्योंकि आगमकी अनेक अपेक्षायें हैं, उनका हार-जीतकी मुख्यता लेकर निर्णय नहीं हो सकता । अतः अपनेको वाद विवादमें पड़ना श्रेयस्कर नहीं है । सोनगढ़ द्वारा यह निर्णय प्राप्त होनेपर मैं तो निश्चित हो
गया था।
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