________________ के क्षयोपशम से होने वाले ज्ञान को गुणप्रत्यय (क्षयोपशम निमित्तक) अवधिज्ञान कहते हैं। 'अवधिज्ञानावरणस्य देशघातिस्पर्द्धकानामुदये सति सर्वघातिस्पर्धकानामुदयाभावः क्षयः देषामेवाऽनदयप्राप्तानां सदवस्थोपशमः तौ निमित्तमस्येति क्षयोपशमनिमित्तः। स शेषाणां वेदितव्यः। शेषाः मनुष्यास्तिर्यञ्चश्च। यह अवा यह अवधिज्ञान मनुष्य व तिर्यञ्चों के होता है। उनमें भी सभी के नहीं होता। संजी, पर्याप्तक, पञ्चेन्द्रिय पर्याययुक्त सामर्थ्यवान जीव के ही यह होता है। क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान छह प्रकार का होता है 1. अनुगामी - 'भास्कर प्रकाशवद् गच्छन्तमनुगच्छति' अर्थात् सूर्य के प्रकाश के समान भवान्तर में जाने वाले के पीछे जाता है वह अनुगामी अवधिज्ञान है। जो अवधिज्ञान अपने स्वामी (जीव) के साथ भवान्तर में जाए उसे अनुगामी अवधिज्ञान कहते हैं। इसके तीन भेद हैं(i) क्षेत्रानुगामी - जो दूसरे क्षेत्र में अपने स्वामी के साथ जाए। (ii) भवानुगामी - जो दूसरे भव में अपने स्वामी के साथ जाए। (iii) उभयानुगामी - जो दूसरे क्षेत्र तथा भव दोनों में अपने स्वामी के साथ जाए। 2. अननुगामी - 'नानुगच्छति तत्रैवातिपतति उन्मुखप्रश्नादेशिकपुरुषवचनवत्' मूर्ख के प्रश्न के समान वहीं गिर जाता है भवान्तर में साथ नहीं जाता है वह अननुगामी है। जो अपने स्वामी (जीव) के साथ न जाए उसे अननुगामी अवधिज्ञान कहते 3. अवस्थित - 'सम्यग्दर्शनादिगुणावस्थानात् यत् परिमाण उत्पन्नस्तत् परिमाण एवावतिष्ठते न हीयते नापि वर्धते लिंगवत् आभवक्षयादाकेवलज्ञानोत्पत्तेर्वा।' अर्थात् सम्यग्दर्शनादि गुणों के अवस्थान से अवधिज्ञान मुक्तिप्राप्ति या केवलज्ञानपर्यन्त जैसे का तैसा बना रहे, न बढ़े न घटे, वह अवस्थित अवधिज्ञान है। जैसे तिलादि चिह्न न घटते हैं न बढ़ते हैं। जो सूर्य मण्डल के समान न घटे न बढ़े उसे अवस्थित अवधि ज्ञान कहते हैं। (i) क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पाः शेषाणाम्।22।। तत्त्वार्थसूत्रम् . (ii) अनुगाम्यननुगामिवर्धमानहीयमानाऽवस्थिताऽनवस्थितभेदात् षड्विधः 29 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org