________________ अंगप्रविष्ट के 12 भेद होते हैं जो निम्न हैं 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग 6. तधर्मकथांग 7. उपासकाध्ययनांग 8. अन्तः कृतदशांग 9. अनुत्तरोपपादिक दशांग 10. प्रश्नव्याकरणांग 11. विपाक सूत्रांग 12. दृष्टिप्रवाद अंग। इनमें से दृष्टिप्रवादांग के प्रभेद भी हैं ___ 1. परिकर्म 2. सूत्र 3. प्रथमानुयोग 4. पूर्वगत 5. चूलिका परिकर्म के भी 5 भेद हैं 1. व्याख्याप्रज्ञप्ति 2. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति 3. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 4. सूर्यप्रज्ञप्ति 5. चन्द्रप्रज्ञप्ति पूर्वगत के 14 भेद हैं ____ 1. उत्पादपूर्व 2. अग्रायणीपूर्व 3. वीर्यानुवादपूर्व 4. अस्ति-नास्तिपूर्व 5. ज्ञानप्रवादपूर्व 6. सत्यप्रवादपूर्व 7. आत्मप्रवादपूर्व 8. कर्मप्रवादपूर्व 9. प्रत्याख्यानपूर्व 10. विद्यानुवादपूर्व 11. कल्याणानुवादपूर्व 12. प्राणावायप्रवादपूर्व 13. क्रियाविशालपूर्व 14. लोकबिन्दुसारपूर्व चूलिका के भी पाँच भेद हैं - 1. जलगता 2. स्थलगता 3. मायागता 4. आकाशगता 5. रूपगता सूत्र और प्रथमानुयोग के एक-एक ही भेद हैं। अंगबाह्य श्रुतज्ञान के 14 आदि भेद हैं 1. सामायिक 2. स्तव 3. वन्दना 4. प्रतिक्रमण 5. वैनयिक 6. कृतिकर्म 7. दशवैकालिक 8. उत्तराध्ययन 9. कल्पव्यवहार 10. कल्पाकल्प 11. महाकल्प 12. पुण्डरीक 13. महापुण्डरीक 14. अशीतिका श्रुतज्ञान मन का विषय है। आचार्य उमास्वामी महाराज ने तत्त्वार्थसूत्र में लिखा है - 'श्रुतमनिन्द्रियस्य'। अर्थात् मन का विषय श्रुत है। श्रुतज्ञानावरण के क्षयोपशम को प्राप्त हुए जीव के विषय को श्रुत कहा गया है। ___27 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org