________________ अवधिज्ञान - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा लिये हुए जो रूपी पदार्थों को पष्ट जानता है उसे अवधिज्ञान कहते हैं। अवधिज्ञान के भेदों का उल्लेख करते हुए आचार्य देवसेन स्वामी लिखते हैं कि देसावहि परमावहि सव्वावहि अवहि होइ तिब्भेया। भवगुण कारणभूया णायव्वा होइ णियमेण॥' अर्थात् देशावधि, परमावधि, सर्वावधि इस प्रकार तीन प्रकार का अवधिज्ञान होता है। इनमें उत्तरोत्तर जानने की शक्ति अधिक होती है। यह नियम से जानना चाहिये। आचार्यों ने अवधिज्ञान के दो भेद भी बताये हैं। भवप्रत्यय - आयु और नामकर्म के उदय का निमित्त पाकर जो जीव की पर्याय होती है उसे भव कहते हैं भव ही जिसका निमित्त होता है वह भवप्रत्यय अवधिज्ञान कहलाता है। यह भवप्रत्यय अवधिज्ञान किन-किन जीवों के पाया जाता है तो उसका समाधान करते हुए आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र में लिखा है कि भवप्रत्यय अवधिज्ञान देव और नारकियों के होता है। यद्यपि देव-नारकियों के अवधिज्ञान होता तो क्षयोपशम से ही है पर वह क्षयोपशम भव के निमित्त से होता है, अतः उसे भवप्रत्यय कहते हैं जैसे पक्षियों का आकाश में गमन करना भवनिमित्तक है. शिक्षा गण की अपेक्षा नहीं। वैसे ही देव-नारकियों के व्रत-नियम आदि के अभाव में भी अवधिज्ञान होता है, अतः उसे भव-निमित्तक कहा गया है। सम्यग्दृष्टि देव-नारकी के अवधिज्ञान होता है तथा मिथ्यादृष्टि के कुअवधिज्ञान अर्थात् विभङ्गावधिज्ञान होता है। तीर्थङ्करों के भी भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है। गुणप्रत्यय अथवा क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान - अवधिज्ञानावरण कर्म के देशघाती स्पर्द्धकों का उदयाभावीक्षय और अनुदय प्राप्त इन्हीं का सदवस्थारूप उपशम इन दोनों के निमित्त से जो होता है, वह क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान है, अथवा अवधिज्ञानावरण कर्म भावसंग्रह गाथा 292 आयुर्नामकर्मोदयविशेषापादितपर्यायो भवः। भवप्रत्ययो भवनिमित्त इति। तत्त्वार्थवार्तिक 1/21/1 भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणाम्। त. सू. 121 28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org