________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १६ )
प्रभाव (फल) में न्यूनता या अधिकता उत्पन्न करने वाला महत्त्वपूर्ण तथ्य है। बहुधा देखा गया है कि ग्रहमैत्री की उपेक्षा कर केवल ग्रहयोग के आधार पर फलादेश करने वाले कुछ विद्वान विपरीत फलादेश करते हैं। इसी सम्भावना को ध्यान में रखकर प्रश्नशास्त्र के सभी मानक-ग्रन्थों में ग्रहमैत्री का विस्तृत विवेचन किया गया है। ___आचार्य पद्मप्रभुसूरि के अनुसार सूर्य, चन्द्र, मंगल एवं गुरु इन ४ ग्रहों का एक वर्ग है तथा बुध, शुक्र, शनि एवं राहु इन ४ ग्रहों का दूसरा वर्ग है। प्रत्येक वर्ग के चारों ग्रह परस्पर मित्र हैं जैसे—सूर्य के चन्द्रमा, मंगल एवं गुरु मित्र हैं। चन्द्रमा के सूर्य, मंगल तथा गुरु मित्र हैं। मंगल के सूर्य, चन्द्रमा एवं गुरु मित्र हैं और गुरु के सूर्य, चन्द्र एवं मंगल मित्र हैं। इसी प्रकार दूसरे वर्ग के ग्रहों में भी मित्रता जाननी चाहिए। किन्तु एक वर्ग का ग्रह दूसरे वर्ग के प्रत्येक ग्रह का शत्रु है। उदाहरणार्थ-सूर्य के बुध, शुक्र, शनि एवं राहु शत्रु हैं। और इसी तरह चन्द्रमा, मंगल और गुरु के भी बुध, शुक्र, शनि एवं राहु शत्रु हैं।
उपर्युक्त दोनों वर्गों के ग्रहों की मित्रता एवं शत्रुता में तारतम्य को स्पष्ट करते हुए आचार्य सूरि कहते हैं कि राहु और सूर्य, गुरु और शुक्र, चन्द्रमा और बुध तथा सूर्य और शनि इन २-२ ग्रहों में परस्पर परम शत्रुता है। किन्तु बुध और शनि ये दोनों तथा सूर्य, चन्द्र एवं मंगल ये तीनों ग्रह आपस में परम मित्र हैं। किन्तु गुरु और शुक्र एक-दूसरे के शत्रु होते हुए भी परस्पर पूज्य भाव रखते हैं।
For Private and Personal Use Only