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की) दृष्टि हो तो यथाक्रमेण पण्य की वृद्धि, कर्म (राज्य, व्यापार, नौकरी आदि) की वृद्धि, निवृत्ति और मृत्यु होती है--ऐसा विद्वानों को कहना चाहिए । इसी प्रकार अन्य भावों के फल का भी विचार करना चाहिए ।
भाष्य : पण्य का विचार द्वितीय भाव से, कर्म का दशम भाव से, निवृत्ति का सप्तम से और मृत्यु का विचार अष्टम स्थान से किया जाता है । अतः इन भावों के स्वामियों का लग्नेश के साथ योग होने पर तथा इन भावों पर चन्द्रमा या भावेश की दृष्टि होने पर इन भावों का फल मिलता है । तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार लग्नेश एवं लाभेश का योग लाभ कारक माना गया है उसी प्रकार लग्नेश और धनेश के योग से पण्य वृद्धि, लग्नेश और कर्मेश के योग से कर्म वृद्धि, लग्नेश और सप्तमेश के योग से निवृत्ति तथा लग्नेश और अष्टमेश के योग से मृत्यु होती है । इन ग्रहों के योग के साथ विचारणीय भाव पर चन्द्रमा या भावेश की दृष्टि अवश्य होनी चाहिए ।
'तत्तत्स्थानेक्षणतः ' इस पद का अर्थ' उन स्थानों पर चन्द्रमा या भावेश की दृष्टि, यह मानना शास्त्रसम्मत है क्योंकि 'चन्द्रमा के सम्बन्ध के बिना समस्त योग निष्फल होते हैं' यह पहले ही कहा जा चुका है । साथ ही भाव पर भावेश की दृष्टि होने से भावफल की वृद्धि होती है यह प्रश्नशास्त्र के अधिकांश आचार्यों का मत है । इसीलिए हमने विचारणीय भाव पर चन्द्रमा या भावेश इन दोनों में से किसी एक की दृष्टि होना स्वीकार किया है, अस्तु । तन्वादि द्वादश भावों में से किसी भी भाव का फल विचार करने का सामान्य नियम यह है कि विचारणीय भाव के स्वामी
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