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( १०७ )
२१. अथ विवाहकाले वृष्टिः स्त्रीमृत्युविचारद्वारम्
अम्बर गतं शुभ ग्रह युग्मं वृष्टिर्भवेद्विवाहादौ ।
लग्ने शुभत्रयस्य तु योगे महती भवेद्वृष्टिः ॥१७॥ अर्थात् दशम स्थान में यदि दो शुभ ग्रह हों तो विवाहादि के समय वर्षा हो। लग्न में ३ शुभ ग्रह होने पर अत्यधिक वर्षा हो।
भाष्य : इस द्वार में विवाह लग्न से वर्षा और स्त्री की मृत्यु का विचार किया गया है। विवाहादि से तात्पर्य समस्त शुभ संस्कारों से है। विवाहादि संस्कार के मुहूर्त में यदि लग्न से दशम स्थान में दो शुभ ग्रह हों तो विवाहादि के अवसर पर वर्षा होती है । यदि लग्न में तीन शुभ ग्रह हों तो अत्यधिक वर्षा होती है। प्रश्न लग्न के द्वारा भी इस रीति से विचार किया जा सकता है । दशम स्थान में २ शुभ ग्रह होने से हल्की वर्षा और लग्न में ३ शुभ ग्रह होने से अधिक वर्षा होती है।
वर्षा के योग : प्रश्न कुण्डली के द्वारा वर्षा की निश्चित जानकारी के लिए अन्य आचार्यों ने कुछ और योगों का विचार किया है। यहां हम कुछ अनुभूत योग देते हैं
यदि प्रश्नकाल में शुभ ग्रह जलराशियों में द्वितीय, तृतीय एवं केन्द्र स्थान में स्थित हों तो निश्चित रूप से वर्षा होती है। कर्क, वृश्चिक, मकर, कुम्भ एवं मीन ये ५ जलराशियाँ और शेष शुष्क राशियाँ होती हैं। शुभ ग्रहों में चन्द्रमा और विशेष रूप से शुक्र जल के प्रतिनिधि ग्रह हैं। इसलिए यदि प्रश्न लग्न में चंद्रमा जलराशिगत हो तो भी वर्षा कहनी चाहिए।
सद्यः वृष्टि के लक्षण : वर्षा शीघ्र होने की जानकारी हमें
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