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में शुभग्रह बैठे हों तो वस्तु मन्दी होती है । इसके विपरीत यदि लग्न निर्बल हो—अर्थात् लग्नेश से दृष्टयुक्त न हो, अपितु पाप ग्रह से युतदृष्ट हो और पापग्रह केन्द्र में हो तो वस्तु तेज होती है । यह सिद्धान्त प्रश्नशास्त्र के सभी आचार्यों को मान्य है । उदाहरणार्थ निम्नलिखित कुण्डलियाँ देखिये :
यहां लग्न लग्नेश गुरु से युक्त और बुध से दृष्ट है । तथा चन्द्रमा केन्द्र में है । अतः लग्न के बलवान होने के कारण मन्दी ( समर्ध) का योग है ।
इस कुण्डली में लग्न पर लग्नेश शुक्र की दृष्टि नहीं है। अपितु मंगल और राहु की दृष्टि है । तथा ये दोनों केन्द्र में स्थित भी हैं । अतः लग्न निर्बल होने के कारण मह ( तेजी ) का योग है ।
३०. अथ नौमृतिबन्धन द्वारम्
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मृत्युर्धरणकं नौश्च फलेन म्रियते येन योगेन तेन योगेन क्षेमेण नौः समायाति मृत्यु योगे आमयावी सम्रियते बद्धः
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सदृशं त्रयम् ।
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मुच्यते ॥ १३८ ॥
समागते ।
शीघ्र ेण मुच्यते ॥१३६॥
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अर्थात् मृत्यु, बन्धन एवं नौका ( जलयान ) तीनों प्रश्नों का फल समान होता है । जिस योग से मृत्यु होती है, उसी योग