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( १५३ ) अष्टमेश दोनों अष्टम भाव में एक ही द्रेष्काण में स्थित हों तो निःसन्देह मृत्यु होती है।
भाष्य : लग्न स्वास्थ्य एवं शरीर का प्रतिनिधि भाव है। यह भाव अपने स्वामी से युक्त होने पर उसकी अभिवृद्धि करता है । अतः लग्नेश की लग्न में स्थिति स्वास्थ्य एवं शरीर सुख के लिए शुभता-सूचक है। अष्टम स्थान मृत्यु का प्रतिनिधि-भाव है । इस भाव का स्वामी भाव से छठे (लग्न) स्थान में बैठकर भावफल का नाश करता है। इसलिए अष्टमेश की लग्न में स्थिति मृत्यु एवं रोगनाशक होती है। यही कारण है कि लग्नेश और अष्टमेश दोनों लग्न में स्थित होकर रोग एवं मृत्यु के नाशक तथा स्वास्थ्यवर्धक माने गये हैं। यदि ये दोनों एक ही द्रेष्काण में साथ-साथ स्थित हों तो शरीर को निरोग और स्वस्थ करते हैं।
लग्नेश की अष्टम या २२वें द्रष्काण में स्थिति मृत्युदायक कही गयी है। यदि मृत्यु भाव का प्रतिनिधि ग्रह अष्टमेश स्वस्थान में बैठकर इसे और बल देता हो तो इस स्थिति में व्यक्ति की मृत्यु होना सुनिश्चित है । इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए ग्रन्थकार ने बतलाया है कि लग्नेश और अष्टमेश दोनों यदि प्रश्नलग्न से अष्टम स्थान में एक ही द्रेष्काण में स्थित हों तो निश्चित रूप से मृत्यु होती है। उदाहरणार्थ कुण्डली देखिये :
यहाँ लग्नेश सूर्य मीन के १६° अंश पर और अष्टमेश गुरु मीन के ११° पर स्थित होने के कारण मीन के द्वितीय द्रष्काण में हैं। तथा ये दोनों अष्टम स्थान
१० में साथ-साथ स्थित हैं। अत: मृत्युकारक हैं।
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