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( १६१ ) में गुरु होने पर उदर विकार या सन्निपात रोग होता है । क्योंकि गुरु इन रोगों का कारक है। ३६. अथ गर्भादिप्रश्न द्वारम्
पृच्छन्त्याः पितृमन्दिरे पितृगृहाभिज्ञाक्षरं गुर्विणी, पत्युश्चापि तदीय मन्दिर गतं गुा अभिज्ञा क्षरम् । शुक्लारब्धदिनव्यवस्थित तिथीन्दत्वा मुनींश्च ध्र वान्,
भागवह्नि भिरेककेन तनयो द्वाभ्यां सुता खेन खम् ॥१६३॥ अर्थात् प्रश्न करने वाली गर्भवती पिता के घर में हो तो पिता द्वारा रखा गया नाम और सुसराल में हो तो सुसराल के नाम के अक्षरों में पति के नाम के अक्षर मिलाकर अंक साधन कर उसमें शुक्ल प्रतिपदा से प्रश्नदिन की संख्या जोड़कर सात ध्रुवांक जोड़ दें। फिर तीन का भाग देने से १ शेष हो तो पुत्र दो शेष हो तो कन्या और शून्य शेष हो तो गर्भपात होता है । ___ भाष्य : गर्भ में पुत्र है या कन्या ? यह जानने के लिए आचार्य ने यहाँ एक सरल विधि बतलाई है । यदि गर्भिणी पिता के घर में यह प्रश्न पूछे तो पिता द्वारा रखा गया नाम और ससुराल में प्रश्न करे तो उसका सुसराल का प्रचलित नाम ग्रहण करना चाहिए। तात्पर्य यह है प्रश्नकाल और प्रश्न के स्थान पर उसका जो प्रचलित नाम हो उसी से विचार करना चाहिए। इस प्रकार गर्भिणी के नाम के अक्षरों में उसके पति के नाम के अक्षर मिला कर जो संख्या आवे, उसमें शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रश्नदिन तक की तिथि संख्या जोड़कर सात (ध्रुवांक) और जोड़ने से संख्या पिण्ड बन जाता है। इसमें तीन का भाग देने से एक शेष होने पर पुत्र, दो शेष होने पर कन्या और शून्य ० शेष होने पर
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