Book Title: Bhuvan Dipak
Author(s): Padmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
Publisher: Ranjan Publications

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Page 168
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६८ ) लिए यही रीति अपनायी है। यदि प्रश्नों की संख्या छ: से अधिक हो तो जो छ: भाव शेष बच गये हैं, उनकी राशियों के बल का विचार कर बलवान् के क्रम से छः अन्य लग्नों की कल्पना करनी चाहिए। इस प्रकार एक लग्न भाव से १२ लग्न बनते हैं, जिनके आधार पर १२ प्रश्नों का विचार एवं फलादेश सुगमतापूर्वक किया जा सकता है। प्रश्नों की अधिकता होने पर उक्त रीति के अनुसार धन, पराक्रम एवं सुख आदि भावों से भी १२-१२ लग्नों की कल्पना की जा सकती है। इस प्रकार एक प्रश्न लग्न के अल्पकाल में ही १४४ लग्नों की कल्पना से १४४ प्रश्नों का भी उत्तर देना सम्भव है। किन्तु एक लग्न में, जिसका समय मध्ममान से २ घन्टा या १२० मिनट होता है, सामान्य तया इतने अधिक प्रश्न पूछने का प्रसंग नहीं आता। इसलिए अन्य आचार्यों ने एक लग्न में ५ या ६ प्रश्नों का विचार करने की रीति ही बतलायी है। उदाहरणार्थ-एक व्यक्ति एक ही लग्न में लाभ, स्त्री एवं सन्तति से सम्बन्धी ३ प्रश्न किये। तत्कालीन प्रश्न लग्न के आधार पर प्रश्न कुण्डली इस प्रकार है। यहाँ प्रथम प्रश्न लाभ का है। अतः उसका विचार कुंडली सं० १ से करना चाहिए। म ११ For Private and Personal Use Only

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