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परम्परा का अनुसरण करते हुए यहाँ विभिन्न भावों के कारक ग्रहों का संक्षिप्त रूप में प्रतिपादन किया है।
स्त्री भाव का कारक शुक्र, धर्मभाव का शनि, कर्म भाव का सूर्य, लाभ भाव का बुध और चन्द्रमा, विद्या का गुरु, पितृभाव का मंगल और मृत्यु एवं भावों का कारक चन्द्रमा होता है । अतः इन ग्रहों का विचार किये बिना इन भावों का फलादेश करना न तो शास्त्रीय ही है और न ही युक्ति संगत । फलादेश के लिए भाव, उसका स्वामी, और भाव के कारक इन तीनों का समान रूप से विचार करके ही फलादेश कहना चाहिए। उदाहरणार्थ यदि स्त्री सम्बन्धी प्रश्न है तो सप्तम भाव, सप्तमेश एवं शुक्र इन तीनों का बलाबल एवं शुभाशुभत्व का विचार करना आवश्यक है। मात्र सप्तम भाव या सप्तमेश के आधार पर फलादेश करना एकांगी या अपर्याप्त निर्णय होगा। इसी प्रकार अन्य भावों का विचार करते समय उनके कारक ग्रहों का भी अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए।
लग्नं चन्द्रोऽस्ति यस्मिस्तदथ दिनमणिर्यत्र जीवस्तन्नीचोऽस्तं गतो वा न यदि सुरगुरुर्व क्रितश्चेत्तदाद्यम् । विकात्यक्ष्मांगजानां भवति किल बली यस्त्रयाणां तदीयं, दौर्बल्यं यत्र मन्दस्तदपि च न बली शिष्टयोर्य स्तदीयम् ॥१६८॥ एवं षट् प्रश्नलग्नान्यथ च षडपराण्येवमषां द्वितीया न्येतेनैव क्रमेण स्फुटमिदमुदितं द्वादशप्रश्नलग्नम् । एतेषां द्वादशानामपि च धनपदद्वादश दर्शवंता
यकैस्तथान्यैरपि सकलमिदं पूर्णमध्याब्धिचन्द्र ॥१६॥ अर्थात् १. लग्न, २. चन्द्रमा जिस राशि में हो वह राशि, ३.
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