Book Title: Bhuvan Dipak
Author(s): Padmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
Publisher: Ranjan Publications

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Page 165
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra oc h 3 낮 19 श के ४ १ चं ११ मं ८रा ९ १० www.kobatirth.org ( १६५ ) यहाँ चतुर्थेश सूर्य और चन्द्रमा की चतुर्थ स्थान पर पूर्ण होने से निधि होने का पूर्ण योग है । किन्तु चन्द्रमा सूर्य के साथ अस्तंगत एवं क्रूर ग्रह मंगल से युक्त है । अतः निधि नहीं निकालनी चाहिए। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाया स्थानस्य भावा न भृगुसुतमृते नो शनि धर्मभावा, नो सूर्यं कर्मभावा न बुध हिमकरौ लाभ भावा भवन्ति । विद्यास्थानस्य भावा न गुरुमवमिनं तातनिस्थान भावा, नेन्दुं मृत्युर्न सर्वे न च तनयपदं भार्गवं श्व ेत रश्मिम् ॥१६७॥ अर्थात् शुक्र के बिना स्त्री भाव का विचार, शनि के बिना धर्म भाव का विचार सूर्य के बिना कर्म भाव का विचार, बुध और चन्द्रमा के बिना लाभ भाव का विचार, गुरु के बिना विद्या भाव, मंगल के बिना पितृभाव, चन्द्रमा के बिना मृत्यु एवं अन्य भावों का विचार नहीं करना चाहिए । भाष्य : ग्रन्थकार ने यहाँ भावों के कारक ग्रहों का निरूपण किया है । भावफल के प्रतिनिधि या प्रतीक ग्रह को कारक कहते हैं । ज्योतिष शास्त्र के आचार्यों ने चरकारक एवं स्थिरकारक के रूप कारक ग्रहों के भेद का विस्तृत विवेचन किया है । किन्तु प्रश्न शास्त्र में सामान्यतया स्थिरकारक को ही भाव का कारक माना गया है । चरकारक के आधार पर महर्षि जैमिनी ने जन्मकुण्डली का फलादेश करने के लिए महत्वपूर्ण योगों का व्याख्यान किया है । ग्रन्थकार ने प्रश्नशास्त्र के आचार्यों की For Private and Personal Use Only

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