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( १६२ ) गर्भपात होता है। प्रश्नशास्त्र के अन्य आचार्यों ने भी लगभग इसी प्रकार संख्या पिण्ड बनाकर उसके आधार पर पुत्र या कन्या के जन्म का निश्चय किया है। संख्या पिण्ड बनाने की रीति सब आचार्यों की भिन्न-भिन्न है। किन्तु यहाँ इतना ध्यान रखना चाहिए कि प्रश्न कुण्डली में भी पुत्रया कन्या के योग का विचार किये बिना केवल अंकों के आधार पर ही ऐसा फलादेश नहीं करना चाहिए। दोनों रीतियों से विचार कर बतलाया गया फल ही सत्य होता है।
एकस्मिन्प्रकृतिः शुभेन सहिते सौख्यातिरेकः क्षपा, नाथेन श्रुतिरदभुता प्रसरति, क्र रेण पीड़ोद्भवः। शके सप्तमगे स्त्रियाः पतिगतं पुत्रादिकं वा पदं,
पृच्छन्त्याः सुरत स्थितावनुभवो वाच्योऽष्टमस्थेऽपि च ॥१६४॥ अर्थात् पति, पुत्र या स्थान के बारे में पूछने वाली स्त्री की प्रश्न कुण्डली में सप्तम स्थान में शुक्र हो वैसी ही स्थिति (यथा वत्) रहती है । शुक्र शुभ ग्रह के साथ हो अधिक सुख, चन्द्रमा के साथ हो तो प्रसिद्धि और पापग्रह के साथ हो तो पीड़ा उत्पन्न होती है। अष्टम स्थान से भी इसी प्रकार फल कहना चाहिए।
भाष्य : पति, पुत्र एवं उनकी पदवृद्धि या प्रगति के बारे में प्रश्न करने वाली स्त्री के सप्तम स्थान में शुक्र की स्थिति उक्त विषयों के बारे में निर्णायक होती है। कारण यह है कि पुरुष की कुण्डली मेंसप्तम स्थान स्त्री का और स्त्री की कुण्डली में सप्तम स्थान पति का द्योतक होता है। इसी प्रकार शुक्र भी पुरुष की कुण्डली में पत्नी का और स्त्री की कुण्डली में पति का कारक
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