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( १५८ ) अष्टम या द्वादश स्थान में हो तो क्षेत्रपाल का दोष होता है। दशम और द्वादश स्थान में मंगल होने पर आकाशदेवी (यक्षिणी) का; लग्न या त्रिक स्थानों में चन्द्रमा होने पर शाकिनी का; सप्तम या द्वादश स्थान में क्रमशः बुध, गुरु, शुक्र, शनि एवं राहु होने पर यथाक्रमेण वन देवता, पितृगण, जलदेव, गृहदेव (कुल देव) एवं प्रेत आदि का दोष जानना चाहिए।
उक्त रीति से दोष या बाधाकारक देव का निश्चय हो जाने पर मन्त्र, अर्चना, बलि (उपहार) यज्ञ एवं स्तवन आदि से देवोपासना करने से वह देवता प्रसन्न होकर कल्याणकारी हो जाता है। इस प्रसंग में यह ध्यान रखने योग्य बात है कि यदि उक्त दोष साध्य होता है, तो इन उपायों से सफलता मिलती है । यदि वह असाध्य हो तो उपाय भी निष्फल जाते हैं। आचार्य नीलकण्ठ ने देव-दोष के साध्यत्व एवं असाध्यत्व का निश्चय इस प्रकार किया है “यदि केन्द्र में बलवान् पाप ग्रह हों तो देव दोष असाध्य होता है और यदि केन्द्र में बलवान् शुभ ग्रह हों तो साध्य होता है।" इस रीति से साध्यासाध्यत्व का विचार कर उपाय करना चाहिए। ३५. अथ दिनचर्याद्वारम्
यदीन्दुर्दिनचर्यायां शुभः स्यादुदयास्तयोः ।
श्रेयांस्तदाऽव गन्तव्यं सकलोऽपि हि वासरः॥१६०॥ अर्थात् दिनचर्या के प्रश्न में यदि चन्द्रमा उदय और अस्तकाल में शुभ हो तो पूरा दिन शुभ जानना चाहिए।
भाष्य : प्रश्नशास्त्र में सभी प्रकार के प्रश्नों का शुभाशुभ फल निश्चय करने के लिए चन्द्रमा, लग्न, नवांश एवं भाव इन
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