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है। यही बात आचार्य पृथुयशास एवं भट्टोत्पल ने कही है। उदाहरणार्थ निम्नलिखित कुण्डलियाँ देखिये : यहाँ लग्न मीन राशि के २०/
१११ १०' है। अत षड्वर्ग की स्थिति इस प्रकार है : लग्न स्वामी गुरु, होरेश चन्द्र, द्रेष्काणेश गुरु | नवांशेश चन्द्र द्वादशांशेश गुरु एवं त्रिशांशेश शुक्र है।
७ चंरा अतः यहाँ शुभ ग्रहों का षड्वर्ग होने के कारण प्रश्न कुण्डली में ग्रह एवं भावों की स्थिति का विचार
किये बिना ही कार्य की सफलता चं११ बर
कहनी चाहिए।
दूसरी कुण्डली में लग्न सिंह राशि २३० अंश तथा २७ कला हैं। अतः षड् वर्ग की स्थिति निम्नलिखित है-लग्नेश-सूर्य ; होरेश=सूर्य; द्रेष्काणेश मंगल ; नवमांशेश मंगल ; द्वादशां शेष-शुक्र और त्रिशांशेश मंगल है। इसलिए यहाँ पापग्रहों के वर्ग की अधिकता के कारण कार्य में असफलता का योग बनता है । यद्यपि लग्न पर शुभ ग्रहों (चन्द्रमा, गुरु) की दृष्टि है और लग्नेश सूर्य भी शुभ ग्रहों (बुध, शुक्र) के साथ बैठा है । तथापि यहाँ इनका विचार न कर केवल पाप वर्गों की अधिकता के आधार पर कार्य में विघ्न बाधा एवं असफलता बतलानी चाहिए।
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