Book Title: Bhuvan Dipak
Author(s): Padmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
Publisher: Ranjan Publications

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Page 150
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ग्रह मास दिन सूर्य ० m ( १५० ) नवांश भोगदिनादिज्ञानाय चक्रम् शुक्र शनि चन्द्र मंगल बुध गुरु ० ० www.kobatirth.org ० X ० ३ घटी ३२. अथ लग्नेशांशलाभद्वारम् लग्नपतिर्यत्रांशे १३ ० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mr २० १५ ० २० २० २० For Private and Personal Use Only ३ १० ० राहु केतु x ० ० २ ० ० पृच्छालग्ने तमंशमवलोव्य । लग्नाधिपांशलग्नांशनाथयोर्दृ ग्युतिसुहृत्त्वम् ॥ १४७॥ यत्र स्यात्तत्र भवेत्सुन्दरता तनुषनादि भावेषु । यावल्लग्नाधिपतेरंशकालः स कालश्च ।। १४८॥ संचार्योऽसौ तावद्यावत् पूर्णा भवन्ति ते भावाः । मासफलं सम्पूर्ण जातं लग्नाधिपात्तदिदम् ॥ १४६ ॥ अर्थात् प्रश्न लग्न में लग्नेश जिस नवमांश में हो उसे देख कर लग्नेश के नवांश स्वामी और लग्न के नवांश स्वामी में दृष्टि, युति एवं मित्रता हो तो लग्नघनादि भावों की वृद्धि होती है । तथा काल की अवधि लग्नेश के नवांशकाल तक जाननी चाहिए । यह काल तब तक चलना चाहिए जब तक ये भाव सम्पूर्ण हो जाए तथा वह कार्य जितनी संख्या पर भाव से लग्नेश हो, उतने मास में पूर्ण होता है ।

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