Book Title: Bhuvan Dipak
Author(s): Padmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
Publisher: Ranjan Publications

View full book text
Previous | Next

Page 149
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४६ ) इसमें गुरु का उपदेश ही बीज है। उस दिन के लग्न में समस्त ग्रहों को अपने-अपने नवमांशों में स्थापितकर तथा उनके आधार पर विचार कर प्रश्नकर्ता को दैवज्ञ फल बताये। भाष्य : पहले बताया जा चुका है कि समस्त प्रश्नों में चन्द्रमा बीज, लग्न पुष्प, नवांश फल एवं भाव उसके स्वाद के समान है । अतः समस्त प्रश्नों का विचार प्रश्नलग्न, चन्द्रमा, नवांश और भाव द्वारा किया जाता है। किन्तु व्यतीत दिनों का ज्ञान करने के प्रश्न में फल विचार प्रश्न लग्न एवं नवांश के आधार पर करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि इस प्रश्न में प्रश्नकुण्डली एवं नवांशकुण्डली दोनों का समान रूप से विचार कर फलादेश करें। पूर्वोक्त नवांशचक्र की सहायता से स्पष्ट लग्न एवं स्पष्ट ग्रहों को अपने-अपने नवांश में स्थापित कर नवांश कुण्डली बनाना सुगम है । इस रीति से बनायी गयी कुण्डली में यदि ग्रह उच्चराशि, स्वराशि या मित्रराशि के नवांशों में हों तो शुभ और यदि नीच राशि या शत्रु राशि के नवांशों में हों तो अशुभ फल कहना चाहिए। इससे व्यतीत दिनों के विविध प्रश्नों का शुभाशुभ ५.ल निश्चय किया जा सकता है। यह शुभाशुभ फल कितने दिन रहेगा ? इसे निर्णय करने की रीति यह हैजितने दिन ग्रह एक नवांश पर रहता है, उतने दिन तक वह अपना अच्छा या बुरा फल देता है । ग्रहों के एक नवांश में स्थित रहने की दिन संख्या की जानकारी के लिए चक्र देखिये : For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180