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( १४८ )
नीचस्थोऽस्तमितो वा मत्युपतिर्नवमगो रिपुक्षेत्रे । नीचो वा भवति यदा व्यवहृतलाभो भवेन्न तदा ।। १४४ ॥
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अर्थात् यदि अष्टमेश नीचराशि या अस्तगंत होकर नवम स्थान में स्थित हो अथवा वह नीच या शत्रु राशि में होकर किसी भी भाव में स्थित हो तो ( जहाज द्वारा लाये गये सौदे के) व्यापार से लाभ नहीं होता ।
भाष्य : अष्टम स्थान नौका का स्थान है । अतः नवम स्थान नौका का व्यापार या धन स्थान है । यदि प्रश्नकाल में अष्टमेश अपनी नीच राशिगत या अस्तंगत होकर नवम स्थान में बैठा हो, तो नौका (जहाज) द्वारा लाये गये सामान से धन लाभ नहीं होता । यही फल अष्टमेश के नीच राशि या शत्रु राशि में कहीं भी स्थित होने पर होता है । कुछ आचार्यों ने लग्नेश एवं अष्टमेश इन दोनों से समुद्री - व्यापार में लाभ-हानि का विचार किया है । उनके अनुसार यदि ये दोनों उच्च स्वराशि या मित्रराशि में हों तो लाभ तथा नीचराशि या शत्रु राशि में हों तो हानि होती है ।
३१. अथातीत दिन लाभादिद्वारम्
लग्ने यदिह विचारो भवति नवांशकगतैर्ग्रहैस्तत्र । बीजं गुरुपदेशों लग्ननवांशोऽन्यथायुक्तम् ॥ १४५ ॥ तत्तन्नवांश कगतान्खेचरान्नयस्य तद्दिने लग्ने । प्रष्टुरवधार्य
गणकैवच्यिमतिक्रान्तदिनवृत्तम् ॥ १४६ ॥
अर्थात व्यतीत दिन के विचार के सम्बन्ध में जो विचार लग्न द्वारा होता है वही नवांशों में स्थित ग्रहों द्वारा होता है ।
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