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( १४६ )
से मुक्ति होती है । मृत्युयोग आने पर जहाज सकुशल आता है, रोगी मरता है और बन्दी शीघ्र छुटकारा पाता है ।
भाष्य : नौका ( जलयान ), बन्धन एवं मृत्यु इन तीनों प्रश्नों में फलादेश समान रीति से किया गया है । कारण यह है कि इन प्रश्नों मे नौका की यात्रा से निवृत्ति, बन्दी की बन्धन से निवृत्ति एवं रोगी की रोग तथा रोग के मूल शरीर से निवृत्ति प्रमुख घटनायें हैं । अतः ये प्रश्न अधिकांशतया निवृत्ति मूलक होने के कारण प्राय: समान प्रकृत्ति के हैं । परिणामतः इनके फल का निश्चय भी समान रीति से किया जाता है । इसलिए ग्रन्थकार का यह कथन - कि जिस योग में रोगी की मृत्यु होती है उसी योग में जहाज सकुशल वापिस आता है और बन्दी बन्धन मुक्त हो जाता है— पूर्णरूपेण युक्तियुक्त है । अन्य आचार्यों का भी यही मत है ।
जले ।
क्षेमायात बहित्रस्य वुडनं प्लवनं पण्यव्यवहृतौ लब्धिर्नावि प्रश्नचतुष्टयम् ॥१४०॥ क्षेमागयन पृच्छायां मृत्युयोगोऽस्ति क्षेमेणायाति नौः पण्यलाभो व्यवहृतौ भवेत् ॥ १४१ ॥
चेत्तदा ।
अर्थात् नौका की सकुशल वापिसी, जल में डूबना, भटकना और नौका से लाये गये सामान से लाभ, नौका विषयक ये चार प्रश्न होते हैं । सकुशल वापिसी के प्रश्न में यदि मृत्युयोग हो तो नौका कुशलतापूर्वक आती है और लाये हुए सौदा से व्यापार में लाभ होता है ।
भाष्य : नौका या पानी के जहाज से सम्बन्धी ४ प्रमुख योग होते हैं : १. विदेश से सकुशल वापिस लौटना २ समुद्र में
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