Book Title: Bhuvan Dipak
Author(s): Padmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
Publisher: Ranjan Publications

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Page 143
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १४३ ) निधि ग्रह से उसके बल का विचार करे । और वस्तु की स्वामी लग्न का बल विचार ग्रह के निर्बल होने पर लग्नेश के बल से करें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाष्य : समर्थ और मह का विचार लग्न के सबल और निर्बल होने से किया जाता है । लग्न के स्वामी एवं शुभ ग्रहों की लग्न पर दृष्टि या युति उसे सबल तथा पाप की दृष्टि युति उसे निर्बल बनाती है । किन्तु यदि लग्न पर लग्नेश की दृष्टि या युति न हो तो जिस वस्तु की तेजी - मन्दी का विचार करना है, उसके स्वामी के बल से लग्न के बल का विचार करना चाहिए । यदि उस वस्तु का स्वामी भी निर्बल हो तो लग्नेश के बल से लग्न के बल का निश्चय करना चाहिए । इस प्रकार लग्न, वस्तु के स्वामी ग्रह या लग्नेश के बल से लग्न के बल का निर्णय कर उसके अनुसार तेजी - मन्दी का निश्चय कर लेना चाहिए। वस्तु के स्वामी ग्रह की विस्तृत जानकारी के लिए तेजी मन्दी के ग्रन्थ अवलोकन करें । पाठकों के लाभार्थ संक्षेप में कौन ग्रह किस वस्तु का स्वामी है ? यह जानने के लिए एक चक्र पृष्ठ १४४ पर लिख रहे हैं : ऋयाणकानां पृच्छायां सौम्या ज्ञेया महात्मभिः । समघं सबले लग्ने मह मबले पुनः ॥ १३६॥ सौम्यदृष्टं स्वामि दृष्टं सौम्यकेन्द्र युतं शुभैः । सबलं ब्रुवते लग्नमबलं त्वन्यथा बुधाः ॥ १३७॥ अर्थात् क्रय-विक्रय के प्रश्न में लग्न के बलवान होने पर मन्दा और निर्बल होने पर तेजी आती है, ऐसा महान आचार्यों For Private and Personal Use Only

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