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है। और यदि वह शत्रु की राशि में स्थित हो तो भाव का नाश करता है। किन्तु इस विषय में हमारा मत है कि किसी भी भाव का स्वामी उच्च, मूलत्रिकोण, स्वराशि या मित्र राशि में त्रिक स्थान में स्थित हो तो वह दोषकारक नहीं है। यदि वह नीच राशि या शत्रु राशि में होकर त्रिक स्थान में स्थित हो तो अवश्य भावफल का विनाश करता है।
उदाहरणार्थ-भाग्यविषयक प्रश्न की इस कुण्डली में राजा यद्यपि भाग्येश और लग्नेश का
योग अष्टम स्थान में हो रहा है किन्तु भाग्येश बुध मित्रराशि में
और • लग्नेश शुक्र स्वराशि में
है । अतः इन दोनों के दोषयुक्त बके २ होने के कारण भाग्य वद्धि होने का निश्चय किया गया ।
वीक्षणयुग्म्यां क्रूरैर्लग्नषडष्टसु च विध्द इत्यबलः ।
पुष्णाति कष्ट भावं मृत्युमपि प्रश्नतश्चन्द्रः॥१०॥ अर्थात लग्न, छठे और आठवें स्थान पाप ग्रहों युक्त या दृष्ट चन्द्रमा निर्बल होता है। प्रश्नकाल में ऐसा चन्द्रमा कष्ट की वृद्धि करता है और मृत्यु देता है।
भाष्य : चन्द्रमा के बलाबल का निर्णय करने के प्रसंग में सामान्यतया क्षीण चन्द्रमा को निर्बल माना गया है। किन्तु ग्रन्थकार का कहना है कि केवल क्षीण चन्द्रमा ही निर्बल नहीं होता । अपितु वह लग्न, छठे एवं आठवें स्थान में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट होने पर भी निर्बल कहा जाता है। इसका कारण
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