________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ११७ ) यदि लग्न और सप्तम में अथवा लग्न और अष्टम में पाप ग्रह हो तो प्रवासी बन्धन या मृत्यु तुल्य संकट में होता है परन्तु वह इससे मुक्त हो जाता है। उसकी मुक्ति का कारण अधिकांशतया लग्नस्थ पाप ग्रह होता है।
प्रवासी की संदिग्ध अवस्था का निर्णय प्रश्नशास्त्र के प्रायः सभी ग्रन्थों में किया गया है। अन्य आचार्यों ने क्रूर ग्रह की स्थिति के अलावा अन्य ग्रहों प्रभाववश कुछ महत्वपूर्ण योगों का व्याख्यान किया है । जिन्हें यहाँ लिखा जा रहा हैप्रवासी की मृत्यु के योग (१) यदि शुभ ग्रह त्रिक स्थान में हों और निर्बल पाप
ग्रहों से दृष्ट हों तथा सूर्य और चन्द्रमा पाप ग्रहों से युक्त हों। लग्नेश और चन्द्रमा छठे या आठवें स्थान में अष्ट
मेश से युक्त हों। (३) पाप ग्रह पृष्ठोदय राशियों में केंद्र, त्रिकोण, षष्ठ या
अष्टम में हों तथा इनपर शुभग्रहों की दृष्टि न हो। (४) प्रश्न लग्न में पृष्ठोदय राशि हो और उस पर पाप
ग्रह की दृष्टि हो। प्रवासी को कष्ट का योग (१) प्रश्न लग्न में पृष्ठोदय राशि हो उस पर पाप ग्रह
की दृष्टि हो या पाप ग्रह केन्द्र में हो तो प्रवासी
दुःख से पीड़ित होता है। (२) यदि अष्टम स्थान में सूर्य और मंगल हो तो मार्म
For Private and Personal Use Only