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( १३० )
भाष्य : सप्तम स्थान आक्रामक का प्रतिनिधि भाव है। अतः सप्तम स्थान में जब राहु स्थित हो तो किला आसानी से टूट जाता है । इसका कारण ग्रन्थकार ने स्वयं स्पष्ट करते हुए कहा है कि दुर्ग भंग के प्रश्न में पाप ग्रह की स्थिति तो शुभ होती है किन्तु उसकी दृष्टि किसी भी स्थिति में शुभ या सहयोगी नहीं मानी जाती। राहु की सप्तम स्थान में स्थिति आक्रमण करने वाले को शुभ तथा उसकी लग्न पर दृष्टि दुर्ग के स्वामी पर अशुभ होती है। फलतः किला टूटना स्वाभाविक है। आचार्य नीलकण्ठ ने भी यही मत व्यक्त किया है।
मूर्ति सप्तमयोः क्रूराभावे लग्नपतिय॑ये ।
षष्ठेऽष्टमे द्वितीये वा तदा दुर्ग न भज्यते ॥१२०॥ अर्थात् लग्न और सप्तम में पाप ग्रह न होने पर यदि लग्नेश छटे, आठवें, बारहवें या दूसरे स्थान में हो तो किला नहीं टूटता।
भाष्य : लग्न और सप्तम में क्रूर ग्रह की स्थिति का फल पहले बताया जा चुका है। किन्तु यदि इन दोनों स्थानों में क्रूर ग्रह न हो तो लग्नेश की स्थिति से या सप्तमेश की स्थिति से दुर्ग भंग के प्रश्न का विचार करना चाहिए। इस प्रश्न के विचार के समय एक ध्यान रखने योग्य बात यह है कि जिस प्रकार सामान्य नियम के विरुद्ध होते हुए भी क्रूर ग्रह की भाव में स्थिति यहाँ शुभ मानी गयी है उसी प्रकार भावेश की त्रिक स्थान एवं मारक स्थान में स्थिति को भी शुभ मानने में सामान्य रीति उल्लंघन किया गया है । तात्पर्य यह है कि इस प्रश्न में भावेश की त्रिक या मारक स्थान में स्थित होकर शभ फल देता है। अतः यदि लग्नेश षष्ठ, अष्टम, द्वादश या द्वितीय (मारक) स्थान में
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