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( १३२ ) मिलती है। किन्तु लग्नेश द्वितीय या त्रिक स्थानों में स्थित हो तो चोर को हानि, भय, बन्धन एवं मृत्यु आदि अशुभ फल मिलता है।
विवादे शत्र हनने रणे संकटके तथा ।
मूतों जयो ज्ञेयः क्रूरदृष्टया पराजयः॥१२२॥ अर्थात् विवाद, शत्रुवध, युद्ध एवं संकट आदि प्रश्नों में लग्न में पाप ग्रह होने पर विजय और पाप ग्रह की दृष्टि से पराजय होती है।
भाष्य : विवाद, मुकद्दमा, चुनाव, शत्रु दमन, युद्ध, आकस्मिक संकट, अप्रत्याशित व्याधि एवं चोरी आदि समस्त उग्र कार्यों में लग्न में स्थित पाप ग्रह शुभ होता है। किन्तु लग्न पर पाप ग्रह की दृष्टि अशुभ होती है। प्रश्नशास्त्र के अन्य ग्रन्थों में भी प्रायः यही बात कही गयी है।
अपरेष्वपि चौर्यादियोगेष्वेवं बिना ग्रहम् । मूतौं सर्वत्र वक्तव्यं चौर्यप्रश्ने शुभग्रहे ॥१२३॥ मूतौ सति न चौयं स्यात्सफलं केवलं भवेत्।
शरीरे मुख्यकुशलं शुभ योग प्रभावतः ॥१२४॥ अर्थात् चोरी आदि के अन्य योगों में भी इसी प्रकार लग्न में ग्रह न होने पर (फल) कहना चाहिए। चोरी के प्रश्न में लग्न में शुभ ग्रह होनेपर चोरी में सफलता नहीं मिलती। मात्र शुभ ग्रह के योग के प्रभाव से शरीर सकुशल रहता है।
भाष्य : चोरी आदि समस्त उग्र एवं पाप कर्मों में लग्न में पाप ग्रह न होने पर शुभ ग्रह की स्थितिवश फल का विचार
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