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( १३३ )
करते हुए आचार्य कहते हैं कि लग्न में शुभ ग्रह होने पर चोरी में सफलता नहीं मिलती है। केवल लग्न में शुभ ग्रह की स्थिति होने के कारण चोर शरीर से सकुशल या सुरक्षित रहता है। वादविवाद, मुकद्दमा, शत्रु दमन, युद्ध एवं अन्य संकट या जोखिम के कार्यों में भी शुभ ग्रह की लग्न में स्थितिवश असफलता ही प्राप्त होती है।
रणे चौर्यादि हनने धातुवादादिकर्म सु।
क्रूरा क्रूर समायोगान्मूर्तावेव विचार्यते ॥१२५॥ अर्थात् युद्ध, चोरी, शत्रु हनन एवं धातुवाद आदि कार्यों में लग्न में पाप एवं शुभ ग्रहों के योग से इस प्रकार विचार किया जात है।
__ भाष्य : युद्ध, चोरी, शत्रु वध, मुकद्दमा, जुआ, तस्करी एवं अन्य आतंककारी, षडयन्त्रकारी या क्रान्तिकारी समस्त गतिविधियों में लग्न में पाप या शुभ ग्रह की स्थिति या दृष्टि के अनुसार विचार करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि इन प्रश्नों के फलादेश का निश्चय केवल लग्न से ही कर लेना चाहिए अन्य भावों से नहीं। कारण यह है कि इन समस्त कार्यों में अवसर, संयोग या तात्कालिक परिस्थिति ही अधिकांशतया परिणाम की निर्यायक होती है तथा इनका प्रतिनिधित्व लग्न भाव करता है। अत: ग्रन्थकार का यह कथन युक्तिसंगत है।
चोरी गये धन का प्रश्न
चोरी-विचार के इस प्रसंग में चोरी गये धन से सम्बन्धी प्रश्न का भी विचार कर लेना उपयुक्त होगा। यदि प्रश्नकुण्डली
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