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( १३१ ) स्थित हो तो दुर्ग के स्वामी के लिए शुभ होने के कारण किला नहीं टूटता। आचार्य नीलकण्ठ ने यह योग लग्न और सप्तम दोनों में पाप ग्रह होते हुए भी माना है। उदाहरणार्थ निम्नलिखित कुण्डली देखिए
रा८
२८. अथ चौर्यादिस्थानद्वारम्
एवं चौर्याय यामीति मूतौ क्रूरः शुभावहः ।
दृष्टि शुभावहाऽत्रापि न क्रूरस्य कदाचन ॥१२१॥ अर्थात् इसी प्रकार 'चोरी करने के लिए जाता हूँ' इस प्रश्न में लग्न में पाप ग्रह शुभ होता है किन्तु यहाँ पाप ग्रह की दृष्टि कदापि शुभ नहीं होती। ___ भाष्य : दुर्ग भङ्ग के प्रश्न में जिस प्रकार लग्न में पाप ग्रह की स्थिति शुभ और लग्न पर पाप ग्रह की दृष्टि अशुभ मानी गयी है। उसी प्रकार चोरी के प्रश्न में भी चोर के लिए लग्न में स्थित पापग्रह शुभ और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि अशुभ मानी गयी है। शुभ ग्रह की लग्न में स्थिति से पाप फल किन्तु उसकी दृष्टि से शुभ फल मिलता है। इस प्रसंग में एक और बात ध्यान देने योग्य यह कि लग्नेश की लग्न पर दृष्टि होने पर या केन्द्र त्रिकोण स्थान में स्थिति होने पर चोरी में सफलता
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