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( १२६ ) और आक्रामक पर अशुभ प्रभाव पड़ता है। परिणामतः लग्न में स्थित पाप ग्रह की स्थितिवश दुर्गभङ्ग नहीं होता। ग्रन्थकार का यह कथन सर्वथा तर्कसंगत है। यह पाप ग्रह कदाचित निर्बल भी हो तो किला नहीं टूटता । यदि वह बलवान हो तो दुर्गभङ्ग का प्रश्न ही नहीं उठता। इस विषय में प्रश्नशास्त्र के प्रायः सभी आचार्यों का यही मत है।
क्षितिपुत्रो विशेषेण राहुर्यदि विलग्नगः ।
शक्रेणापि तदा दुर्गभंग कर्तुं न शक्यते ॥११॥ अर्थात् विशेष रूप से यदि मंगल या राहु लग्न में हो तो इन्द्र भी किला नहीं तोड़ सकता। __भाष्य : पिछले श्लोक में कहा गया है कि क्रूर ग्रह लग्न में होने पर दुर्गभङ्ग नहीं होता। अन्य पाप ग्रहों की अपेक्षा मंगल और राहु में पापत्व अधिक होता है। तथा ये दोनों ग्रह बल, सेना एवं सेनापति के प्रतिनिधि या प्रतीक भी हैं । अतः प्रश्न लग्न में मंगल या राहु की स्थिति प्रभाववश, सेना, सेनापति एवं प्रतिरक्षा व्यवस्था अत्यन्त सुदृढ़ होने के कारण ही ग्रन्थकार ने कहा है कि इन्द्र भी किले को नहीं तोड़ सकता । अन्य आचार्यों ने भी इस मत को स्वीकार किया है।
सप्तमो यदि राहुः स्यादुर्ग झटिति भज्यते।
मूतौ क्रूरः शुभोऽमुष्मिन् क्रूरदृष्टिर्न शोभना ॥११६॥ अर्थात् यदि सप्तम स्थान में राहु हो तो दुर्ग शीघ्र टूट जाता है। (क्योंकि) लग्न में पाप ग्रह शुभ होता है, पाप ग्रह की दृष्टि शुभ नहीं होती।
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