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( १२८ )
चिकित्सा विचार
प्रश्नकुण्डली में लग्न चिकित्सक का, चतुर्थ औषधि का सप्तम रोग का और दशम रोगी का प्रतिनिधि भाव है। अतः यदि चतुर्थेश और दशमेश में मित्रता हो तो औषधि रोगी को लाभ करती है अन्यथा नहीं। इसी प्रकार यदि लग्नेश और चतुर्थेश में मित्रता हो तो चिकित्सक रोगी को ठीक करने का यश प्राप्त करता है। यदि कदाचित सप्तमेश और दशमेश में मित्रता हो तो रोग दीर्घकाल तक रहता है। इस प्रसंग में एक और बात ध्यान देने योग्य यह है कि यदि लग्न में शुभ ग्रह हो तो निश्चित रूप से स्वास्थ्य लाभ होता है किन्तु यदि लग्न में पाप ग्रह हो तो रोग काफी समय तक रहता है। २७. अथ दुर्गभंगद्वारम्
पृच्छायां मूर्तिगे क्रूरे दुर्गभङ्गो न जायते।
बलहीनेऽपि वक्तव्यं किं पुनर्बलशालिनि ॥११७॥ अर्थात् दुर्गभङ्ग के प्रश्न में लग्न में पाप ग्रह होने पर किला नहीं टूटता । निर्बल ग्रह होने पर ऐसा कहना चाहिए, बलवान् हो तो बात ही क्या है। ___ भाष्य : लग्न भाव दुर्ग, दुर्गपति या स्थायी का और सप्तम भाव आक्रामक या यायी का प्रतिनिधि भाव है तथा शत्रु का आक्रमण, गंभीर संकट, विवाद एवं युद्ध आदि के प्रश्न में लग्न में पाप ग्रह की स्थिति से विजय और पाप ग्रह की दृष्टि से पराजय होती है। अतः दुर्ग भंग के प्रश्न में प्रश्नकुण्डली में यदि पाप ग्रह स्थित हो तो दुर्ग एवं दुर्गपति पर शुभ प्रभाव
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