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( १२६ ) दिन निश्चय करें। रोगी के जीवित रहने के योग (i) लग्नेश बलवान हो तथा शुभ ग्रह उच्च या मूल
त्रिकोणराशि में केन्द्र में स्थित हो। (ii) एक भी शुभ ग्रह बलवान होकर लग्न में बैठा हो
और चन्द्रमा को देखता हो। (iii) शुभ ग्रह ३, ६, ६ एवं ११वें स्थान में हों। (iv) केन्द्र, त्रिकोण और अष्टम में शुभ ग्रह हों तथा
चन्द्रमा उपचय स्थान में हो। (v) लग्न और चन्द्रमा दोनों शुभ ग्रह से दृष्ट हों। रोग विचार
रोग का निदान सामान्यतया अष्टम स्थान में स्थित ग्रह से किया जाता है। यदि अष्टम स्थान में कोई शुभ ग्रह न हो तो अष्टम स्थान पर जिस ग्रह की दृष्टि हो उससे रोग विचार करना चाहिए। यदि दृष्टि भी न हो तो अष्टमेश से रोग का विचार करना चाहिए । इस प्रकार जो ग्रह रोगकारक हो वह जिन रोगों का प्रतिनिधित्व करता है, उसके अनुसार रोग का निश्चय सरलतापूर्वक किया जा सकता है। ग्रह और उनके रोगों का विवरण इस प्रकार है : ग्रह
रोग सूर्य : ज्वर, अतिसार पित्तविकार एवं हृदय रोग । चन्द्रमा : कफ, शीत, दमा, निमोनिया एवं तपेदिक । मंगल : दुर्घटना में चोट, बवासीर, रक्तचाप एवं ग्रन्थिस्राव।
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