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(iv) चन्द्रमा के दोनों पापग्रह हों । उदाहरणार्थ साथ की कुण्डली सं० ४ देखिये :
लग्ने रविः स्मरे चन्द्रो भवेद्योगोऽयमेव हि।
एतेषु रोगिणो मृत्युः सद्यस्त्वन्यस्य चापदः॥११६॥ अर्थात् लग्न में सूर्य और सप्तम में चन्द्रमा हो तो भी यह योग बनता है। इन योगों में रोगी की शीघ्र मृत्यु होती है और अन्य को विपत्ति मात्र ।।
भाष्य : यदि रोगी के सम्बन्ध में पूछे गये प्रश्न के समय लग्न में सूर्य हो और सप्तम में चन्द्रमा हो तो रोगी की शीघ्र मृत्यु होती है। कारण यह कि लग्न स्थित पाप ग्रह का लग्न प्रभाव है, साथ ही वह अपनी दृष्टि द्वारा चन्द्रमा को भी प्रभावित कर रहा है । अतः लग्न और चन्द्रमा दोनों के पाप प्रभावयुक्त होने के कारण रोगी का बचना असम्भव है। कुछ आचार्यों का मत है कि यदि लग्न में चन्द्रमा और सप्तम में रवि हो तो रोगी की मृत्यु होती है। इस स्थिति में भी लग्न और चन्द्रमा दोनों पर पाप प्रभाव रहता है । रोगी की मृत्यु के अन्य योग (i) पापग्रह षष्ठेश लग्न में स्थित हो और व्यक्ति की
जन्मराशि को देखता हो। (ii) चन्द्रमा दो पाप ग्रहों के मध्य में चतुर्थ या अष्टम
स्थान में हो।
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