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( १२३ ) पाप ग्रहों की दृष्टि होगी तथा लग्न पापक्रान्त भी रहेगी। इस स्थिति में स्वास्थ्य लाभ की सम्भावना नहीं हो सकती। और यदि चन्द्रमा भी लग्न, षष्ठ या अष्टम स्थान में स्थित हो जाय तो उस पर भी पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ेगी। परिणामतः इस योग में रोगी की मृत्यु होना स्वाभाविक है। इसी प्रकार चन्द्रमा के पापक्रांत होने पर भी मृत्यु होती है। क्योंकि प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा कार्य सिद्ध का बीज माना गया है।
इस श्लोक में रोगी की मृत्यु के चार योग बतलाये गये हैं, जो क्रमश: इस प्रकार हैं :
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(i) द्वितीय, सप्तम एवं द्वादश स्थान में पापग्रह हों तथा चन्द्रमा लग्न में हो। उदाहरणार्थ साथ की कुण्डली नं० १ देखिये :
(ii) द्वितीय, सप्तम एवं द्वादश स्थान में पापग्रह हों तथा चन्द्रमा षष्ठ स्थान में हो। उदाहरणार्थ साथ की कुण्डली सं० २ देखिये :
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(iii) द्वितीय, सप्तम एवं द्वादश स्थान में पापग्रह हों तथा चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो । उदाहरणार्थ कुण्डली सं० ३ देखिये :
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