________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १२१ ) भाष्य : पहले श्लोक में कहा जा चुका है कि जब पणफर (२, ५, ८, एवं ११) स्थान में ग्रह आता है तो प्रवासी का आगमन होता है। यहाँ इन स्थानों में चन्द्रमा की स्थिति वश आगमन योग बताया गया है । पणफर स्थानों में से केवल अष्टम स्थान का यहाँ ग्रहण नहीं किया गया क्योंकि इस स्थान में चन्द्रमा होने पर प्रवासी या तो किसी विपत्ति एवं बंधन में होता है अथवा उसकी मृत्यु सम्भव है। इसीलिए ग्रन्थकार ने अष्टम स्थान को छोड़कर शेष द्वितीय, पंचम एवं एकादश स्थान में चन्द्रमा होने पर प्रवासी का आगमन कहा है।
इन्दुः सप्तमगो लग्नात्पथिकं वकित मार्गगम्।
मार्गाधिपश्च राश्यर्द्धात्परभागे व्यवस्थितः ॥११३॥ अर्थात् प्रश्न लन्न से चन्द्रमा सप्तम स्थान में हो और नवमेश किसी राशि के उत्तरार्द्ध में हो तो व्यक्ति मार्ग में होता है।
भाष्य : सप्तम स्थान यात्रा से निवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है और नवम स्थान मार्ग का । अतः यदि चन्द्रमा सप्तम स्थान में हो और नवमेश राशि के उत्तरार्द्ध (१५ अंश से अधिक) हो तो प्रवासी लौटते समय मार्ग में होता है । अन्य आचार्यों ने भी इस मत का समर्थन किया है।
चरलग्ने चरांशे च चतुर्थे चन्द्रमाः स्थितः ।
ब्रूते प्रवासिनं व्यकतं समायातं स्ववेश्मनि ॥११४॥ अर्थात् लग्न में चरराशि या चर नवांश हो और चन्द्रमा चतुर्थ स्थान में स्थित हो तो प्रवासी अपने घर आ गया हैयह स्पष्ट कहना चाहिए।
भाष्य : चतुर्थ स्थान घर एवं गृह सुख का स्थान है। जब
For Private and Personal Use Only