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( १२२ ) इसमें चन्द्रमा हो तथा प्रश्न लग्न में चर राशि हो तो पथिक का प्रवास समाप्त होकर उसे घर में आमोद-प्रमोद एवं सुख मिलता है। प्रश्न लग्न में चर राशि का नवांश होने पर भी यही फल जानना चाहिए। वस्तुतः चतुर्थ स्थान में शुभ ग्रह या चन्द्रमा की स्थिति होने पर यात्रा नहीं होती, किन्तु परदेश से आगमन अवश्य होता है। अन्य आचार्यों का भी यही मत है।
उदाहरणार्थ निम्नलिखित कुण्डली देखिये :
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२६. अथमृत्युरोगादिद्वारम्
स्मरे व्यये धने क्रूरे लग्नमृत्यौ रिपौ शशि ।
सद्यो मृत्युकरो योगः क्रूरे वा चन्द्रपार्श्वगे ॥११५॥ अर्थात सप्तम द्वितीय और द्वादश स्थान में पाप ग्रह तथा लग्न अष्टम या षष्ठ में चन्द्रमा हो-यह योग शीघ्र मृत्युदायक है । अथवा चन्द्रमा के दोनों ओर पाप ग्रह होने पर भी शीघ्र मृत्यु होती है।
भाष्य : इस द्वार में ग्रन्थकार ने रोगी की मृत्यु का विचार किया है। रोगी की अवस्था का विचार करते समय यदि सप्तम, द्वितीय और द्वादश स्थान में पाप ग्रह होंगे तो लग्न पर
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