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( ११६ ) यह है कि यदि इन स्थानों में चर राशि हो तो यात्रा होती है। किन्तु यदि स्थिर राशि हो तो यात्रा नहीं हो पाती।
यात्रा में व्यक्ति को सुख मिलेगा या दुःख इसका निर्णय करने के लिए अनेक योगों में से कुछ महत्वपूर्ण योग लिखे जा रहे हैं : (१) लग्न में पृष्ठोदय राशि हो और इस पर पाप ग्रहों
की दृष्टि हो तथा ५, ७ एवं हवें स्थान में पापग्रह
हों तो यात्रा में कष्ट मिलता है। (२) लग्न में पाप ग्रह हों तो यात्रा कष्टमय होती है। (३) लग्न या लग्नेश से जितने ग्रह नवम और द्वादश
स्थान में हों तो यात्रा में उतने संकटों का सामना करना पड़ता है। लग्न और लग्नेश से जितने शुभ ग्रह नवम स्थान में
हों यात्री को उतनी बार लाभ एवं हर्ष मिलता है। (५) यदि पाप ग्रह की राशि में केन्द्र या त्रिकोण भाव
में पाप ग्रहों से दृष्ट शनि हो तो यात्री बन्धन में पड़ जाता है। द्वितीये केन्द्रतोऽम्येति यदा खेटस्तदागमः ।
आयायिसु ग्रहं दृष्टा अयादिदमशंकितः ॥१११॥ अर्थात् जब केन्द्र से दूसरे स्थान में ग्रह आता है तब (प्रवासी) घर आता है-यह बात आगन्तुक ग्रह को देखकर स्पष्ट रूप से कहनी चाहिए।
भाष्य : जब ग्रह केन्द्र स्थानों से पणफर स्थानों में आव तो प्रवासी अपने घर लौट आता है। द्वितीय, पंचम, अष्टम,
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