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( ११६ ) २४. अथ दीप्ति पृच्छाद्वारम्
गृहमागतो न यदसौ कि बद्धः किमथ हत इति प्रश्ने ।
मूतौ क्रूरो यदि तत्र हतो न बद्धोऽथवा पुरुषः ॥१०७॥ अर्थात घर नहीं आया प्रवासी कहीं बन्दी है या मर गया ? इस प्रश्न में यदि पाप ग्रह लग्न में हो तो वह न तो मरा है और न ही बन्दी है।
भाष्य : इस द्वार में ग्रन्थकार ने दीप्त (संदिग्ध) प्रश्न का विचार किया है। यहाँ विशेषरूप से प्रवासी की संदिग्ध अवस्था का निश्चय किया गया है कि वह जीवित है या मर गया है अथवा बन्धनादि में है। इस प्रकार के प्रश्न में यदि लग्न मे पाप ग्रह हो तो प्रवासी सकुशल है इसके विपरीत यदि लग्न में शुभ ग्रह हो तो प्रवासी रोगी, बन्दी या अन्य कष्ट में होता है ।
सप्तमगोऽष्टमगो वा चेत्क्रूरस्तद्धतोऽथ बद्धोवा। मूतौ च सप्तमेऽपि च यद्धा लग्नेऽष्टमे च भवेत् ॥१०॥ क्रूरस्तदाऽसौ पुरुषो बद्धश्च हतश्च मुच्यते च परम् ।
दीप्तत्वाद्विहितमिदं व्याख्यानं क्रूरविषयमिह ॥१०६॥ अर्थात् यदि पाप ग्रह सप्तम या अष्टम भाव में हो तो (प्रवासी की) मृत्यु या बन्धन होगा यदि लग्न और सप्तम या लग्न और अष्टम में पापग्रह स्थित हो तो प्रवासी बन्धन या मृत्यु तुल्य संकट में होता है किन्तु मुक्त हो जाता है। यह पाप ग्रह का वर्णन दीप्तत्व के आधार पर किया है। __भाष्य : यद्यपि प्रश्न लग्न में क्रूर ग्रह की स्थिति प्रवासी की कुशलता की सूचक है। किन्तु सप्तम और अष्टम स्थान में उसकी स्थिति प्रवासी की मृत्यु या बन्धन का बोध कराती है।
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