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यह है कि पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट ग्रह विनष्ट संज्ञक होता है तथा विनष्ट संज्ञक ग्रह निर्बल एवं अनिष्टकर होता है | अतः प्रश्न कुण्डली में ऐसा चन्द्रमा कष्ट की वृद्धि करता है और कभी कभी मृत्यु कारक भी हो जाता है । उदाहरणार्थं - यहाँ षष्ठस्थान में शनि के साथ स्थित चन्द्रमा पर मंगल की दृष्टि है । अतः रोगी को मृत्यु तुल्य कष्ट मिलेगा ।
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द्वादशे शोभनः खटो विवाहादिषु सद्व्ययम् । क्रूरोऽप्यसद्व्ययं चोर राजाग्नि प्रभवं ग्रहः ॥ १०६ ॥
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अर्थात द्वादश स्थान में स्थित शुभ ग्रह विवाहादि शुभ कार्यों पर व्यय कराता है और पाप ग्रह चोर, राजदण्ड या अग्निकाण्ड आदि अशुभ कार्यों से हानि कराता है ।
भाष्य : द्वादश स्थान व्यय का प्रतिनिधि भाव है । अत: इस स्थान में स्थित ग्रह व्ययकारक कहा गया है । किन्तु यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि यदि इस स्थान में कोई शुभ ग्रह स्थित हो तो विवाह, यज्ञोपवीत, मुण्डन एवं अन्य शुभ कार्यों में खर्चा होता है । यदि इस स्थान में पाप ग्रह हो तो चोरी, राजदण्ड एवं अग्निकाण्ड जैसे अशुभ कार्यों से हानि होती है । इस विषय में हमारा अनुभव है कि व्यय स्थानगत सूर्य राज दण्ड, मंगल चोरी और अग्निकाण्ड, शनि बीमारी, राहु केतु अचानक झगड़े के कारण अपव्यय कराता है ।