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( १०५ ) अर्थात् यदि लग्न से षष्ठ स्थान में दो शुभ ग्रह और एक पाप ग्रह हो तो इस योग में उत्पन्न स्त्री विषकन्या होती है।
भाष्य : उक्त योग का विचार सामान्यतया जन्मकुण्डली और प्रश्नकुण्डली दोनों के आधार पर किया जाता है। किन्तु इस प्रसंग में यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि इस योग का विचार तभी करें जब प्रश्नकर्ता कोई स्त्री हो। प्रश्नकाल में यदि लग्न से छठे स्थान में दो शुभ ग्रह और एक पाप ग्रह बैठा हो तो प्रश्न करने वाली स्त्री विषकन्या होती है। शुभ एवं पाप ग्रहों का विचार श्लोक ४२ के आधार पर कर लेना चाहिए।
विषकन्या का फल या प्रभाव यह होता है कि वह अपने जन्म के बाद पितृकुल का क्षय शुरू कर देती है और विवाह के बाद पतिकुल का भी नाश करती है। वह सामान्यतया विधवा और सन्तानहीन होती है। उदाहरणार्थ-इस कुण्डली में बुध और शुक्र (दो शुभ ग्रह) सूर्य । (पाप ग्रह) के साथ षष्ठ स्थान में सिंह राशि में स्थित है । अतः इस प्रश्न को पूछने वाली स्त्री को विष कन्या कहना चाहिए। २०. अथ भावान्तगतग्रहद्वारम् ।
भावान्तगतः खेट परभावफलं ददाति पृच्छासु।
अन्तघटीर्यावदसावसीनफलं विवाहादौ ॥६६॥ अर्थात् सभी प्रकार के प्रश्नों में भाव के अन्त में स्थित ग्रह अगले भाव का फल देता है। किन्तु विवाह विषयक प्रश्नों में अन्तिम घटी तक वह उसी भाव का फल देता है।
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