________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
माना है। कारण स्पष्ट है कि लग्न में स्थित पाप ग्रह की सप्तम स्थान पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण वह दम्पति की हानि या मृत्यु कर सकता है । इसी तथ्य को ध्यान में रखकर ग्रन्थकार ने लग्न में पाप ग्रह होने पर स्त्री-मृत्यु होना बतलाया है। किन्तु उच्चराशिगत ग्रह का अशुभ प्रभाव शून्य तुल्य होता है । अतः वह विवाह लग्न में स्थित होकर सप्तम स्थान को देखता हुआ भी पाप ग्रह स्त्री की मृत्यु नहीं करता । सारांश यह कि विवाह लग्न में पाप ग्रह होने पर स्त्री की मृत्यु होती है किन्तु उच्चराशिगत किसी भी ग्रह के होने पर स्त्री की मृत्यु नहीं होती। २२. अथ वादविवाद विचारद्वारम्
क्रूरः रवेटो लग्ने विवाद पृच्छासु जयति विवदन्तम् ।
सर्वावस्थासु परं नीचास्ते जयति द्विषितम् ॥६६ अर्थात् विवाद आदि के प्रश्न में यदि क्रूर ग्रह लग्न में हो तो वादी की जीत होती है। किन्तु यदि यह नीच या अस्तंगत हो तो हर हालत में शत्रु जीतता है।
भाष्य : इस द्वार में वाद विवाद, युद्ध, लड़ाई, मुकदमा एवं चुनाव सम्बन्धी प्रश्नों में हार-जीत का विचार दिया गया है। मुकदमा, आक्रमण या लड़ाई में पहल करने वाले को वादी या यायी कहते हैं और उसका सामना करने वाले को प्रतिवादी या स्थायी । लग्नवादी का और सप्तम स्थान प्रतिवादी का प्रतिनिधि भाव है । विवाद विषयक उक्त समस्त प्रश्नों में क्रूर ग्रह की स्थिति शुभ किन्तु दृष्टि अशुभ मानी गई है। अतः इस प्रकार के प्रश्न में यदि क्रूर ग्रह लग्न में स्थित हो तो सप्तम स्थान पर उसकी दृष्टि होने के कारण वादी की जीत होती है । और यदि
For Private and Personal Use Only