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( १११ )
सन्धि योग
वादी-प्रतिवादी की जय-पराजय के प्रसंग में सन्धि का विचार करना आवश्यक समझते हुए पाठकों की जानकारी के लिए एक अनुभूत सन्धि योग लिखा जा रहा है-यदि शुभ ग्रह विषम राशियों में लग्न, एकादश या द्वादश स्थानों में स्थित हों तो बलवान् विरोधियों में सन्धि होती है। किन्तु यदि पाप ग्रह उक्त राशि एवं भावों में हों तो विवाद, मुकदमा या लड़ाई भयंकर रूप धारण कर लेती है।
लग्नं द्यूनं मुक्त्वा परस्परं क्रूरयोः सकलदृष्टौ।
विवद द्विवादि युगलं सुरिकाभ्यां प्रहरति तदैवम् ॥१०१॥ अर्थात् लग्न और सप्तम स्थान के अतिरिक्त अन्य स्थान में स्थित दो पाप ग्रहों की परस्पर दृष्टि होने पर वाद विवाद करते हुए वादी और प्रतिवादी छुरों का प्रहार करते हैं। - भाष्य : पिछले श्लोक में बताया जा चुका है कि यदि लग्न और सप्तम में क्रूर ग्रह हों तो विवाद की समाप्ति शीघ्र नहीं हो तथा काफी समय के बाद दोनों पक्षों में या तो सन्धि हो जाती है अथवा हार-जीत का निर्णय । यही कारण है कि हथियारों से लड़ाई होने का विचार करते समय ग्रन्थकार ने लग्न और सप्तम में क्रूर ग्रह की स्थिति का मुख्यतया निषेध किया है। यदि लग्न और सप्तम के अलावा अन्य स्थानों में स्थित दो पाप ग्रहों में परस्पर दृष्टि हो तो वादी और प्रतिवादी दोनों पक्ष छुरी-तलवार आदि हथियारों से एक-दूसरे पर आक्रमण करते हैं। कुछ आचार्यों का मत है कि इस योग में वादी की मृत्यु होती है। किन्तु यह मत तर्कसंगत नहीं लगता। हमारा
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