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( १०८ ) अपने आसपास के वातावरण से भी मिल जाती है। हमारे देश के बगैर पढ़े-लिखे किसान चारों ओर के वातावरण को देखकर सद्यः वृष्टि का निश्चय कर लेते हैं। सद्यः वृष्टि (शीघ्र वर्षा होने) के कुछ लक्षण जो हमारे अनुभव में आये हैं, वे इस प्रकार हैं - यदि बिल्लियां बार-बार अपने नाखूनों से धरती को कुरेदें, लोहे के ऊपर मैल या जंग लग जाय, चीटियां बिना किसी कारण के अपने अण्डे को लेकर भूमि के ऊपर एकत्रित हों, सर्प पेड़ की डाल पर लटक जावे या गाय आदि पालतू जानवर घर से बाहर जाने की इच्छा न करें और खुरों को बारम्बार जमीन पर मारें तो जानना चाहिए कि वर्षा शीघ्र होने वाली है। इस प्रकार के अनेक लक्षणों का विवेचन संहिता ग्रन्थों में किया गया है।
मूर्ताबुच्चः खेटो जामित्रे दधाति येन दृशम् ।
स नो हन्ति कलत्रं क्रू राश्चान्ये तु निघ्नन्ति ॥८॥ अर्थात् लग्न में उच्चराशिगत ग्रह सप्तम स्थान को देखने से स्त्री को नहीं मारता। किन्तु पाप ग्रह लग्न में स्थित हो तो स्त्री को मारते हैं।
भाष्य : विवाह लग्न का प्रभाव दम्पति के जीवन सम्बन्ध एवं त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ एवं काम) सिद्धि पर पड़ता है। अतः विवाह का मुहूर्त एवं लग्न शुद्धि का विचार प्राचीन काल से किया जाता रहा है। मुहर्त शास्त्र के समस्त ग्रन्थों में विवाह लग्न की शुद्धि सविस्तार एवं सावधानीपूर्वक की गयी है। यह विचार इस गहराई तक किया गया है कि लग्न से किस-किस भाव में स्थित कौन-कौन सा ग्रह अशुभ या नेष्ट होता है। प्रायः सभी आचार्यों ने विवाह लग्न में पाप ग्रह एवं चन्द्रमा को नेष्ट
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