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( १०६ ) भाष्य : जन्म कुण्डली और वर्ष कुण्डली में भाव एवं सन्धि में स्थित ग्रह के फल का विचार ससन्धि द्वादश भाव के स्पष्टीकरण या चलितचक्र से करते हैं। इस रीति के द्वारा एक ही राशि में स्थित ग्रह कभी अगले भाव, कभी पिछले भाव और कभी-२ सन्धि का फल देता है। किन्तु प्रश्न कुण्डली में भाव स्पष्टीकरण या चलित चक्र के आधार पर फलादेश नहीं किया जाता । अपितु प्रश्नशास्त्र में भाव के अन्तिम अंशों में स्थित ग्रह विवाह आदि के प्रश्न को छोड़कर अन्य समस्त प्रश्नों में अग्रिम भाव का फल देता है । क्योंकि वह शीघ्र ही अग्रिम भाव में प्रवेश कर जाता है। अत: निकट भविष्य में अगले भाव में उसकी स्थिति होने के कारण अग्रिम भाव का फल देना स्वाभाविक है। किन्तु विवाह आदि प्रश्नों में वह अन्तिम क्षण तक उसी भाव का फल देता है, जिसमें वह स्थित हो। यदि कदाचित भाव के अन्तिम अंशों में स्थित ग्रह वक्री हो तो भी वह भाव का ही फल देता है अग्रिम भाव का नहीं। कारण स्पष्ट है कि उसकी निकट भविष्य में अग्रिम भाव में जाने की सम्भावना नहीं है, अस्तु । उदाहरणार्थ भाग्य संबंधी प्रश्न की इस कुण्डली में भाग्येश मंगल
अष्टमस्थान में तुला २६° पर है, । १० १० गुरु लग्न में मीन १०° पर और
चंद्रमा सप्तम में कन्या के १६ पर स्थित है। अतः यहाँ मंगल भावान्त में स्थित होने के कारण
अष्टभाव स्थान पर नवम भाव का फल देगा। अत: कहना चाहिए कि भाग्योदय शीघ्र होने वाला है।
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