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पंचमेश नष्ट संज्ञक न हो और पंचम स्थान को देखता हो तब प्रसव होता है। यदि पंचमेश नष्टसंज्ञक हो और पंचम स्थान को न देखता हो तो गर्भपात होता है। और यदि पंचमेश नष्ट संज्ञक होकर पंचम स्थान को देखता हो तो मरे हुए बच्चे का जन्म होता है, ऐसा हमारा अनुभव है। उदाहरणार्थ, निम्न
लिखित कुण्डली देखिये :
यहां पंचमेश बुध की पंचम स्थान पर पूर्ण दृष्टि है और वह नष्ट संज्ञक नहीं है। अतः इस मास में प्रसव होगा, यह कहना
चाहिए, दिन का निश्चय करने के लिए चन्द्रमा की पंचम स्थान पर दृष्टि या घात चन्द्रमा का विचार कर लेना चाहिए।
प्रश्नशास्त्र के अन्य आचार्यों ने प्रसव काल का ज्ञान करने के लिए एक सरलतम उपाय बतलाया है--प्रश्नकाल में लग्न के जितने नवांश भुक्त हों उतने मास का गर्भ होता है तथा लग्न के जितने नवांश भोग्य हों उतने मास बाद प्रसव होता है। दिनादि का ज्ञान वर्तमान नवांश की भोग्य कलाओं से अनुपात के आधार पर कर लेना चाहिए। प्रक्रिया यह है कि वर्तमान नवांश की भोग्य कलाओं को ३० से गुणा कर २०० का भाग दें, यहां लब्धि दिन संख्या होगी। इन दिनों को मास संख्या में जोड़ने से प्रश्न दिन से जितने महिना और दिनों के बाद प्रसव होगा वह काल आसानी से जाना जा सकता है।
उदाहरणार्थ, किसी ने प्रसवकाल जानने के लिए प्रश्न किया। प्रश्नकाल में स्पष्ट लग्न = ४/१३/४० थी। अत: यहां
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